सीजी भास्कर, 23 नवंबर। छत्तीसगढ़ सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों से मिलने वाले पोषण आहार की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए नई व्यवस्था लागू की है। जिसके तहत 1 जनवरी से टेक होम राशन (टीएचआर) के लिए फेस वेरिफिकेशन और ओटीपी प्रणाली शुरू होगी। लाभार्थियों का बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और मोबाइल ओटीपी के जरिए राशन वितरण सुनिश्चित किया जाएगा।
आपको बता दें कि आंगनबाड़ी केंद्रों में नई व्यवस्था के तहत अब चेहरा पढ़कर छत्तीसगढ़ सरकार महतारियों को पोषण आहार देगी। आंगनबाड़ी में पोषण आहार वितरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने यह नई व्यवस्था 1 जनवरी से लागू की जाएगी जिसमें टेक होम राशन के लिए फेस वेरिफिकेशन और ओटीपी प्रणाली शुरू होगी। टेक होम राशन (टीएचआर) के लिए फेस वेरिफिकेशन और ओटीपी व्यवस्था एक जनवरी से लागू हो जाएगी। जो महिलाएं केंद्रों तक पोषण आहार लेने आएंगी, उनका फेस रीडर बायोमेट्रिक सिस्टम से सत्यापन किया जाएगा। चेहरा पढ़ने के बाद ही उन्हें आहार दिया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वास्तविक लाभार्थी के पास ही खाद्य चीजों की डिलीवरी हुई है। दूसरा गर्भवती महिलाएं अगर केंद्र तक नहीं आ पाएगी तो उनकी जगह उनका पोषण आहार लेने आने वाले अन्य स्वजन के माध्यम से मोबाइल नंबर पर ओटीपी भेजकर भी सत्यापन किया जा सकेगा। लाभार्थियों को उनके पंजीकृत मोबाइल नंबर पर एक विशिष्ट ओटीपी प्राप्त होगा, जिसे कार्यकर्ता को दिखाना होगा ताकि राशन डिलीवरी प्रक्रिया पूरी हो सके। प्रदेश में 52 हजार 400 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। यहां एक लाख से अधिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं काम कर रहीं है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को राज्य सरकार ने स्मार्ट फोन भी दे रखा है। फेस वैरिफिकेशन के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों में व्यवस्था की जाएगी, इसके लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
गौरतलब हो कि कई बार शिकायतें मिलती हैं कि पोषण आहार लाभार्थियों तक नहीं पहुंचता है और इसमें हेराफेरी की जाती है। पोषण आहार देने का मकसद कुपोषण की समस्या को दूर करना है। ऐसे में पारदर्शी व्यवस्था से कुछ हद तक सुधार होगा। वर्ष 2019 में छत्तीसगढ़ में बच्चों में कुपोषण 23.37 प्रतिशत था, जो 2021 में घटकर 19.86 प्रतिशत रह गया और 2022 में घटकर 17.76 प्रतिशत पर आ गया। वर्तमान में करीब 16 प्रतिशत है। इस तरह पिछले तीन सालों में कुपोषण की दर में 5.61 प्रतिशत की कमी आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक किसी भी प्रदेश में एक साल के भीतर अगर कुपोषण की दर में दो प्रतिशत या इससे ज़्यादा गिरावट आती है तो यह संतोषजनक स्थिति मानी जाती है।