सीजी भास्कर, 11 मार्च । छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के कुल्हाड़ी घाट जंगलों में 19 से 21 जनवरी के बीच हुई मुठभेड़ (Naxli Surrender) में एसडीके एरिया कमेटी के डिप्टी कमांडर दिलीप उर्फ सतु गंभीर रूप से घायल हो गया था।
जान बचाने के लिए उसने चार दिन तक बिना भोजन-पानी के जंगल की एक गुफा में छिपकर गुजारे। आखिरकार, घायल अवस्था में किसी तरह वह बाहर निकला, कुछ दिनों तक इलाज कराया और फिर आत्मसमर्पण करने का फैसला किया।
आत्मसमर्पण के बाद मीडिया से बातचीत में सतु ने मुठभेड़ (Naxli Surrender) से जुड़े कई राजफाश किए। उसने बताया कि सुरक्षाबलों की घेराबंदी इतनी कड़ी थी कि नक्सलियों के पास न भागने का रास्ता बचा था, न ही कहीं छिपने का ठिकाना। एनकाउंटर के दौरान उसके सिर पर गोली लगी, लेकिन वह किसी तरह भागकर जंगल की एक गुफा में छिप गया।
चार दिन तक भूख, प्यास और घाव की पीड़ा सहते हुए उसने खुद को बचाए रखा। जब स्थिति थोड़ी सामान्य हुई, तो वह गुफा से बाहर निकला और कुछ दिन इलाज कराने के बाद सरेंडर करने का निर्णय लिया। सतु ने बताया कि अब जंगलों में नक्सलियों का टिके रहना नामुमकिन हो गया है।
सुरक्षाबलों की लगातार बढ़ती सर्चिंग और ऑपरेशनों (Naxli Surrender) ने उन्हें छिपने तक का मौका नहीं दिया। उसने कहा कि हालात इतने खराब हो चुके हैं कि भोजन और पानी मिलना तक मुश्किल हो गया है। कई बार हफ्तों तक भूखे-प्यासे रहना पड़ता है, जिससे कैडर में असंतोष बढ़ता जा रहा है।
सुरक्षाबलों की कार्रवाई को लेकर सतु ने कहा कि अब हर समय मुठभेड़ (Naxli Surrender) का डर बना रहता है, जिससे नक्सली मानसिक रूप से भी कमजोर होते जा रहे हैं। उसने कहा कि सरकार की पुनर्वास नीति के तहत आत्मसमर्पण करने वालों को सुरक्षित जीवन और सुविधाएं दी जा रही हैं, इसलिए वे भी मुख्यधारा में लौटें और हिंसा का रास्ता छोड़ दें।
गरियाबंद पुलिस के अनुसार, पिछले एक साल में सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव और लगातार हो रही मुठभेड़ों के कारण कई नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि सरकार की नीति स्पष्ट है—जो आत्मसमर्पण करेगा, उसे पुनर्वास योजना का लाभ मिलेगा, और जो हिंसा की राह पर रहेगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई जारी रहेगी।