सीजी भास्कर, 11 मार्च । होली रंगों का पर्व है, जिसे भारत के हर शहर, कस्बे और गांव में धूमधाम से मनाया जाता है। लोग रंग और गुलाल उड़ाते हुए “बुरा न मानो, होली है” कहते हुए नाचते-गाते हैं। हर कोई खुशी से भरा होता है, लेकिन कोरबा जिले के एक गांव (KHARHARI VILLAGE OF KORBA) में होली का रंग नहीं चढ़ता।
इस गांव (KHARHARI VILLAGE OF KORBA) में होली न मनाने की एक अनोखी परंपरा है: आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यहां पिछले 150 वर्षों से होली का उत्सव नहीं मनाया गया है। यहां न तो रंग-बिरंगी पिचकारियां चलती हैं और न ही गुलाल उड़ाया जाता है।
इस गांव की होली हमेशा से फीकी रही है। ग्रामीणों का कहना है कि पिछले डेढ़ सौ सालों से यहां होली का आयोजन नहीं हुआ है। पीढ़ी दर पीढ़ी लोग अपने पूर्वजों की बताई गई परंपराओं का पालन कर रहे हैं। इसके पीछे का कारण भी बेहद दिलचस्प है।
खरहरी गांव में 150 वर्षों से नहीं मनाई जाती होली (KHARHARI VILLAGE OF KORBA)
यह गांव खरहरी कहलाता है, जो कोरबा-चांपा रोड पर स्थित है और जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। खरहरी के निवासी आज भी एक ऐसी परंपरा का पालन कर रहे हैं, जिसे अंधविश्वास से जोड़ा जाता है। यह परंपरा उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है।
गांव की साक्षरता दर 76 प्रतिशत है, लेकिन ग्रामीण लंबे समय से बुजुर्गों की बातों का आंख मूंदकर पालन करते आ रहे हैं। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि उनके जन्म से पहले ही यहां होली न मनाने की परंपरा शुरू हो गई थी।
खरहरी गांव में होली का आयोजन नहीं होता (KHARHARI VILLAGE OF KORBA)
गांव के बुजुर्ग कीर्तन चौहान बताते हैं कि लगभग 150 साल पहले होली के दिन गांव में आग लग गई थी, जिससे काफी नुकसान हुआ था। गांव के लोगों का मानना है कि जब बैगा ने होलिका दहन किया, तभी उसके घर में आग लग गई। आसमान से गिरे अंगारे बैगा के घर पर गिरे और देखते ही देखते आग पूरे गांव में फैल गई।
गांव के युवा परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं (KHARHARI VILLAGE OF KORBA)
इस गांव के निवासी नमन राम का कहना है कि वे शिक्षित हैं, फिर भी अपने पूर्वजों की परंपराओं का पालन कर रहे हैं। उन्हें यह चिंता है कि अगर वे गांव में होली खेलेंगे, तो इससे नुकसान हो सकता है। ये मान्यताएं निश्चित रूप से होली के उत्सव को फीका कर देती हैं। लेकिन हम अपनी विरासत में मिली परंपराओं को आगे बढ़ा रहे हैं। वर्षों पहले बुजुर्गों द्वारा बनाए गए नियमों का हम पालन कर रहे हैं।
होली न मनाने के पीछे एक मान्यता यह है कि देवी मड़वारानी ने सपने में आकर कहा था कि गांव में न तो कभी होली का त्योहार मनाया जाए और न ही होलिका दहन किया जाए। ऐसा करने पर बड़ा अपशगुन होगा।
गांव की महिलाएं बताती हैं कि शादी से पहले वे होली मनाती थीं, लेकिन जब से वे खरहरी गांव आई हैं, उन्होंने होली का पूरी तरह से त्याग कर दिया है। कोरबा के खरहरी गांव की यह प्रथा आज के समय में लोगों को हैरान कर देती है।