उत्तर प्रदेश , 28 अप्रैल 2025 :
Mahoba News: उत्तर प्रदेश में महोबा जिला अस्पताल की ऐसी तस्वीर सामने आई हैं जिसके बाद यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था सवालों के घेरे में आ गई हैं. रविवार शाम आई तेज आंधी-तूफान के बाद अस्पताल की बिजली आपूर्ति बाधित हो गई, जिसके बाद करीब 45 मिनट तक अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में अंधेरा पसरा रहा. डॉक्टर मोबाइल की रोशनी में मरीजों की इलाज करते हुए दिखाई दिए. यही नहीं मरीजों को इंजेक्शन तक टॉर्च जलाकर दिए गए.
महोबा जिला अस्पताल की ये हालत तब है जब यहां हैवी जनरेटर मशीन उपलब्ध है. स्वास्थ्य विभाग हर माह जनरेटर के डीजल पर लाखों रुपये खर्च कर रहा है, बावजूद इसके तूफ़ान की वजह से बिजली कटते ही न तो जनरेटर चालू किया गया और न ही किसी वैकल्पिक व्यवस्था का सहारा लिया गया. जिसकी वजह से इमरजेंसी सेवाएं भी ठप हो गईं.
बिजली कटते ही इमरजेंसी में छाया अंधेरा
सबसे हैरान करने वाली तस्वीर तब सामने आई जब इमरजेंसी वार्ड में ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर और स्टॉफ खुद मोबाइल टॉर्च जलाकर इलाज करते नजर आए. मरीजों को इंजेक्शन से लेकर अन्य उपचार भी मोबाइल की रोशनी में किया गया. अस्पताल प्रशासन की इस घोर लापरवाही का वीडियो भी सामने आया है, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. जिसके बाद महोबा में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर सवाल उठने लगे हैं.
महोबा जिला अस्पताल की बत्ती गुल, अंधेरे में डूबा इमरजेंसी वार्ड, टॉर्च की रोशनी में इलाज करते दिखे डॉक्टर
इस मामले पर जिला अस्पताल के सीएमएस डॉक्टर पवन अग्रवाल से सवाल किया गया तो वो जवाब टालते नजर आए. जिम्मेदार अधिकारी न तो स्थिति को स्पष्ट कर रहे हैं और न ही अपनी गलती स्वीकार कर रहे हैं. वहीं, अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचे मरीज और उनके तीमारदारों ने प्रशासन पर लापरवाही और अनदेखी के गंभीर आरोप लगाए हैं. मकनियापुरा मोहल्ला निवासी आमना बताती है कि वह शाम के समय जिला अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में इलाज कराने गई थी जहां उनका इलाज अंधेरे ने ही हुआ.
यूपी में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद बुनियादी सुविधाओं का ये हाल है कि इमरजेंसी जैसे महत्वपूर्ण वार्ड भी बिजली जाते ही अंधेरे में डूबे जाते हैं. ऐसे में अगर अंधेरे में किसी मरीज के साथ कोई गंभीर हादसा हो जाए तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? जिला अस्पताल की यह बदहाल स्थिति यह बताने के लिए काफी है कि कागजों पर भले ही स्वास्थ्य सेवाएं चुस्त-दुरुस्त दिखाई जाती हो, मगर हकीकत में कुछ और ही है.