जगह जहां कभी रजवाड़ों की शांति और गरिमा बसती थी, अब वहां चीख-पुकार, मारपीट और तनाव का माहौल छा गया है। छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले का ऐतिहासिक राजमहल बुधवार को हिंसा और टकराव का गवाह बना।
कभी विरासत थी, अब विवाद का केंद्र बन चुका है सक्ती का राजमहल
सक्ती का यह ऐतिहासिक राजमहल, जो कभी रजवाड़ों की आन-बान और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक था, अब लगातार पारिवारिक और राजनीतिक संघर्षों का अखाड़ा बनता जा रहा है। बीते कुछ वर्षों से यहां रह रहे बड़ी रानी और राजा धर्मेंद्र (दत्तक पुत्र) के बीच विवाद गहराता जा रहा है, जो अब सड़कों तक पहुंच चुका है।
25 जून की दोपहर, जब शाही परिसर बना जंग का मैदान
घटना बुधवार 25 जून की दोपहर लगभग 4 बजे की है। जानकारी के मुताबिक, बड़ी रानी के समर्थकों ने महल खाली कराने के उद्देश्य से परिसर में मौजूद राजा धर्मेंद्र के परिवार पर अचानक हमला कर दिया। इसके जवाब में राजा धर्मेंद्र के समर्थक टोलाडीह और जजंग गांव से पहुंच गए और महल के अंदर घुसकर पलटवार किया।
कुछ ही देर में पूरा परिसर चीख-पुकार, धक्का-मुक्की और हाथापाई में तब्दील हो गया। एक ओर राजशाही की दीवारें थीं, दूसरी ओर पारिवारिक गुस्से की लपटें।
सत्ता, राजनीति और विरासत की जंग
यह झगड़ा केवल परिवारिक नहीं है। राजा धर्मेंद्र, जो वर्तमान में जेल में बंद हैं और भाजपा के जिला पंचायत सदस्य भी हैं, का राजनीतिक प्रभाव इस संघर्ष की पृष्ठभूमि में अहम भूमिका निभा रहा है। लंबे समय से चल रहा परिवारिक उत्तराधिकार विवाद अब सार्वजनिक टकराव में बदल गया है।
प्रशासन मूकदर्शक, FIR नहीं दर्ज
घटना की सूचना मिलते ही सक्ती थाना प्रभारी अनवर अली अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे और भीड़ को नियंत्रित किया। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि घंटों तक चले विवाद के बाद भी किसी पक्ष ने लिखित शिकायत दर्ज नहीं कराई। न कोई FIR, न कोई कानूनी कार्रवाई।
चार घंटे की अफरा-तफरी के बावजूद प्रशासन की भूमिका सीमित और प्रतिक्रियाहीन रही, जो पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है।
विरासत बचाएगा कौन?
सवाल अब सिर्फ ये नहीं कि किसका अधिकार महल पर है, सवाल यह भी है कि इतिहास और विरासत की रक्षा कौन करेगा? क्या यह शाही इमारत विवादों के बोझ तले टूट जाएगी या फिर इसे फिर से गरिमा मिलेगी?