ओडिशा के देवगढ़ में एक गांव की 80 वर्षीय महिला की मौत के बाद उसके समुदाय के लोगों ने अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया. वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि महिला ने 50 साल पहले अपनी जाति से बाहर शादी कर ली थी. इसके बाद लोगों ने महिला का अपने समाज से बहिष्कार कर दिया था. अब महिला की बीमारी के चलते मौत हो गई. लेकिन फिर भी समुदाय के लोगों ने महिला से मुंह मोड़ लिया.
ये मामला देवगढ़ जिले के तिलेइबनी ब्लॉक के जराइकेला गांव से सामने आया है. 80 साल की बसंती महाकुद की मंगलवार दोपहर मौत हो गई, लेकिन उनके समुदाय से एक भी सदस्य उनके अंतिम संस्कार के लिए आगे नहीं आया, जिसके बाद एक सामाजिक संगठन ने महिला का अंतिम संस्कार किया. अंतिम संस्कार करने से पहले कई घंटों तक महिला का शव लावारिस पड़ा रहा. लेकिन उसके समुदाय से किसी ने नहीं देखा.
50 साल पहले जाति से बाहर की थी शादी
जानकारी के मुताबिक बसंती और उसके पति लोकनाथ महाकुद के बच्चे नहीं थे. दोनों ने लगभग 50 साल पहले अपनी जाति से बाहर शादी की थी. तब से लेकर अपनी जिंदगी के आखिरी वक्त तक बसंती और उसके पति को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा. लोकनाथ की लगभग चार साल पहले मौत हो गई थी, जिसके बाद से बसंती सरकारी ग्रामीण आवास योजना में मिले घर में अकेले रहती
पड़ोसी करते थे महिला की देखभाल
बसंती कई महीनों से बीमार थी. उसकी देखरेख उसके पड़ोसी करते थे. लेकिन मंगलवार को जब दोपहर के वक्त पड़ोसी बसंती को खाना देने आए तो बसंती बेजान हुई घर के फर्श पर पड़ी थी. पड़ोसियों ने बसंती के बारे गांव वालों और उसके समुदाय के सदस्यों को जानकारी दी, लेकिन बसंती का अंतिम संस्कार करने के लिए कोई भी नहीं आया. जब कोई और रास्ता नजर आया तो पूर्व पंचायत समिति सदस्य बलराम गडनायक ने मामले में दखल दी और स्थानीय स्वयंसेवक अक्षय साहू से संपर्क किया, जो अंतिम संस्कार में मदद करने के लिए सहमत हो गए.
अंतिम संस्कार करने पहुंचे लोग
बिप्रचरण जयपुरिया, प्रसन्ना धाल, बिनोद बरुआ, टूना बेहरा, रमेश नायक, संजय किंडो और सिल्वेस्टर बहल समेत अन्य स्वयंसेवक अंतिम संस्कार करने के लिए मौके पर पहुंच गए. साथ ही बाद में, भीम आर्मी की देवगढ़ यूनिट के कार्यकर्ता रिंकू बेहरा, परमानंद कुसुम, विकास रंजीत, सुनील नायक और केदार राणा भी वहां पहुंचे और रीति-रिवाज के साथ महिला के शव को गांव के श्मशान घाट तक ले जाने में मदद की. इस दौरान भारी बारिश भी हो रही थी.
भारी बारिश के बावजूद स्वयंसेवकों ने मंगलवार शाम को शव यात्रा का आयोजन किया. इसके बाद शव का सम्मान पूर्वक अंतिम संस्कार किया गया. समिति के पूर्व सदस्य बलराम गडनायक ने कहा, ‘इस जोड़े को सिर्फ इसलिए जिंदगी भर सामाजिक अलगाव का सामना करना पड़ा. क्योंकि उन्होंने अपनी जाति से बाहर शादी करने का फैसला किया था. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ऐसे समय में जब समुदाय को उसके साथ खड़ा होना चाहिए था. उन्होंने उससे मुंह मोड़ लिया. मैं उन स्वयंसेवकों का आभारी हूं जिन्होंने इस सबसे ऊपर उठकर उसे वह सम्मान दिया जिसकी वह हकदार थी.’