सीजी भास्कर 10 जुलाई बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के विरोध में विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. इस मामले पर गुरुवार को कोर्ट में सुनवाई हो रही है. जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ इस पर सुनवाई कर रही है. याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि हम वोटर्स लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती दे रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि हम सभी याचिकाओं पर नहीं जाएंगे. वहीं, चुनाव आयोग की पैरवी पूर्व अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल कर रहे हैं.
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि पहले ये साबित कीजिए कि चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह सही नहीं है. गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि अपने दावे के प्रमाण में 11 दस्तावेजों को अनिवार्य किया गया है. ये पूरी तरफ से पक्षपातपूर्ण है. उन्होंने कहा कि पहली जुलाई 2025 को 18 साल की आयु वाले नागरिक वोटर लिस्ट में शामिल हो सकते हैं. वोटर लिस्ट की समरी यानी समीक्षा हर साल नियमित रूप से होती है। इस बार की हो चुकी है. लिहाजा अब करने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि चार कसौटियों पर ये कवायद गलत है. ये कवायद नियमों के खिलाफ है. भेदभावपूर्ण, एकतरफा और मनमानी है. दूसरा कानूनी प्रावधानों का गलत मायना निकाला गया है.
इस पर जस्टिस धूलिया ने कहा कि आपका ये कहना कि ये काल्पनिक है उचित नहीं है. उनका अपना लॉजिक है. जस्टिस धूलिया ने याचिकाकर्ता को कहा कि आप ये नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग जो कर रहा है वो कर नहीं सकता. उनके अपने तर्क हैं. चुनाव आयोग ने तारीख तय कर दी है. इसमें आपको क्या आपत्ति है? आप तर्कों से ये साबित करें कि आयोग सही नहीं कर रहा है.याचिकाकर्ताओं के तर्कों पर क्या बोला कोर्ट?याचिकाकर्ता के अधिवक्ता गोपाल शंकर ने कहा कि चुनाव आयोग SIR को पूरे देश में लागू करना चाहता है और इसकी शुरुआत बिहार से की जा रही है. इस पर जस्टिस धूलिया ने कहा कि चुनाव आयोग वही कर रहा है, जो संविधान में दिया गया है. तो आप यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा कुछ कर रहे हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए?गोपाल शंकर नारायणन ने कहा कि चुनाव आयोग वह कर रहा जो उसे नहीं करना चाहिए. यहां कई स्तरों पर उल्लंघन हो रहा है. यह पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है.
मैं आपको दिखाऊंगा कि उन्होंने किस तरह के सुरक्षा उपाय दिए हैं. दिशानिर्देशों में कुछ ऐसे वर्गों का उल्लेख है जिन्हें इस रिवीजन प्रक्रिया के दायरे में नहीं लाया गया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया की कानून में कोई आधार नहीं है.कोर्ट ने कहा कि क्या चुनाव आयोग जो सघन परीक्षण कर रहा है वो नियमों में है या नहीं? और ये सघन परीक्षण कब किया जा सकता है? आप ये बताइए कि ये अधिकार क्षेत्र में आयोग के है या नहीं? इस पर गोपाल ने कहा कि चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में है.