सीजी भास्कर, 21 जुलाई। Jagdeep Dhankhar Resignation : सोमवार देर शाम जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे की घोषणा की थी, लेकिन इसका तात्कालिक कारण राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने का नोटिस नजर आ रहा है। धनखड़ ने बतौर सभापति उस प्रस्ताव को स्वीकार किया था जिसमें विपक्ष के 63 सदस्यों के हस्ताक्षर थे। यह जानकारी सरकार के फ्लोर लीडर्स को नहीं थी।
इतना ही नहीं, धनखड़ ने कोशिश की थी कि महाभियोग का मामला पहले राज्यसभा में ही चले, जो स्पष्ट रूप से विपक्ष के खाते में जाता क्योंकि उसका प्रस्ताव ही स्वीकार किया गया था। इसके बाद कुछ घटनाएं ऐसी घटीं, जिससे धनखड़ शायद क्षुब्ध हुए और उन्होंने इस्तीफे का फैसला ले लिया। उन्होंने शाम छह बजे तक सरकार को अपने इस फैसले से अवगत करा दिया और रात 9.25 पर इसे सार्वजनिक भी कर दिया। मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया।
मंगलवार को दिनभर धनखड़ के इस्तीफे को लेकर अटकलें चलती रहीं। लेकिन यह बात लगभग तय हो चुकी थी कि एक कारण जस्टिस वर्मा ही थे। सरकार की ओर से पहले ही घोषणा की जा चुकी थी कि भ्रष्टाचार के आरोपित जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी है। सरकार की योजना थी कि इसे पहले लोकसभा से पारित किया जाए, फिर राज्यसभा में भेजा जाए। लोकसभा में महाभियोग के नोटिस में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और भाजपा के रविशंकर प्रसाद व अनुराग ठाकुर के साथ-साथ सत्तापक्ष और विपक्ष के 145 सांसदों के हस्ताक्षर से यह स्पष्ट है कि सरकार इस मुद्दे पर सर्वसम्मति बनाने में काफी हद तक सफल रही है।
हालांकि, राज्यसभा में लगभग 3.30 बजे धनखड़ ने 63 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ महाभियोग का नोटिस मिलने और इसकी प्रक्रिया शुरू करने का एलान कर दिया। हैरानी की बात यह रही कि इन सांसदों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों का एक भी सांसद नहीं था। यह कमी भाजपा के फ्लोर मैनेजर की रही होगी, लेकिन यह अपेक्षा थी कि सरकार को इसकी जानकारी धनखड़ के कार्यालय से मिलेगी क्योंकि नेता सदन भाजपा के हैं।
गौरतलब है कि उसी समय धनखड़ ने अपने राज्यसभा के महासचिव को कार्यवाही शुरू करने का निर्देश भी दिया, जिसमें दोनों सदनों का संयुक्त समिति का गठन भी शामिल था। यानी धनखड़ इस मामले को लेकर बहुत सक्रिय थे। धनखड़ जस्टिस वर्मा के मुद्दे पर काफी मुखर रहे हैं और वह चाहते थे कि यह मामला राज्यसभा से ही शुरू हो। हालांकि, इसमें एक खतरा था।
दरअसल, विपक्ष की ओर से राज्यसभा में ही 50 से ज्यादा विपक्षी सदस्यों ने जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ भी महाभियोग का नोटिस दिया हुआ है। ऐसे में वह मामला भी उठ सकता था।
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ को सत्तापक्ष ने इस असहज स्थिति के लिए नाराजगी से अवगत करा दिया था। बताया जा रहा है कि इसके बाद ही नेता सदन जेपी नड्डा ने धनखड़ को संदेश भेजा कि वे और किरेन रिजीजू मंत्रणा सलाहकार समिति की बैठक में नहीं आ रहे हैं।
इसी बीच एक घटना रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के कमरे में हुई। सूत्रों के अनुसार वहां भाजपा के कई सांसदों ने एक पेपर पर हस्ताक्षर किए। कहा जा रहा है कि ये हस्ताक्षर भाजपा की ओर से भी जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ नोटिस दिए जाने को लेकर किए जा रहे थे। लेकिन हो सकता है कि धनखड़ ने इसे कुछ और समझा हो। खैर जो भी हो, घटनाएं कुछ इस तरह हुईं कि असहजता बढ़ती गई।
ऐसे में स्वाभाव से अक्खड़ धनखड़ ने एकबारगी इस्तीफे का निर्णय कर लिया और शाम छह बजे तक इसका संकेत सरकार को भी दे दिया। वैसे सूत्रों के अनुसार सरकार को इसकी भनक लग गई थी और बैठकों का दौर शुरू हो चुका था। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की बैठक हुई थी। प्रधानमंत्री को भी इसकी जानकारी दी गई थी।