सीजी भास्कर 24 जुलाई
नई दिल्ली।
2006 के मुंबई लोकल ट्रेन सीरियल धमाका मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा और अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है, जिसमें 12 दोषियों को बरी कर दिया गया था। कोर्ट का कहना है कि यह फैसला किसी अन्य लंबित मामले की मिसाल नहीं बनेगा। हालांकि, बरी किए गए आरोपी वापस जेल नहीं भेजे जाएंगे।
इस केस की सुनवाई जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के सामने हुई। महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि हाईकोर्ट के इस फैसले के कानूनी नतीजे महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (MCOCA) के तहत चल रहे दूसरे मामलों को प्रभावित कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
पीठ ने स्पष्ट किया कि सभी आरोपी पहले ही रिहा किए जा चुके हैं, इसलिए उन्हें दोबारा जेल भेजने का कोई सवाल नहीं उठता। लेकिन कोर्ट ने यह भी साफ किया कि हाईकोर्ट का यह विवादित फैसला कोई कानूनी मिसाल नहीं बनेगा, और इस पर रोक रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “इस फैसले को किसी अन्य मामले में उद्धरण के रूप में नहीं लिया जा सकता।”
हाईकोर्ट ने क्यों किया था बरी?
17 साल तक चली लंबी सुनवाई के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते सोमवार को सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था। इनमें चार को पहले मौत की सजा और बाकी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। हाईकोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांडक शामिल थे, ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में पूरी तरह असफल रहा।
हाईकोर्ट ने कहा कि –
- आरोपियों के इकबालिया बयान और गवाहों की गवाही पर संदेह है।
- विस्फोट में इस्तेमाल बम का प्रकार भी रिकॉर्ड में नहीं है।
- बरामद सबूतों का कोई निर्णायक मूल्य नहीं है।
- जांच एजेंसियों की कार्यशैली संतोषजनक नहीं रही।
क्या है 2006 का ट्रेन ब्लास्ट केस?
11 जुलाई 2006 की शाम मुंबई की लोकल ट्रेनों की पश्चिमी लाइन पर 7 सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में 180 से ज्यादा लोगों की जान गई और 800 से ज्यादा लोग घायल हुए। यह हमला भारत के सबसे भीड़भाड़ वाले लोकल नेटवर्क पर हुआ था और इसे पाकिस्तान समर्थित आतंकी साजिश बताया गया था।
इस मामले में टाडा और मकोका अदालतों के तहत सुनवाई चली और 2015 में 12 आरोपियों को दोषी ठहराया गया था। 8 साल बाद हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए सभी को बरी कर दिया।
आगे क्या होगा?
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर आंशिक रोक लगाई है, यह देखा जाना होगा कि क्या इस फैसले का असर महाराष्ट्र और देशभर में मकोका के तहत चल रहे मामलों पर पड़ेगा या नहीं। फिलहाल आरोपियों को दोबारा जेल भेजने की बात नहीं है, लेकिन मामला अब दोबारा उच्चतम न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ गया है।