सीजी भास्कर, 20 सितंबर। (H-1B Visa Fee Hike) अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीजा शुल्क में बड़ी बढ़ोतरी के बाद भारत में सियासत गरमा गई है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला और उन्हें “कमजोर प्रधानमंत्री” बताया। वहीं, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी केंद्र सरकार की विदेश नीति को सवालों के घेरे में लिया।
राहुल गांधी का तीखा हमला
राहुल गांधी ने सोशल साइट एक्स पर अपनी 2017 की एक पोस्ट दोबारा साझा करते हुए कहा,
मैं दोहराता हूं, भारत के पास एक कमजोर प्रधानमंत्री है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि एच-1बी वीजा पर ट्रंप के फैसले से भारत को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। क्योंकि इससे आईटी सेक्टर पर सीधा असर पड़ेगा और अमेरिका में भारतीयों के रोजगार के अवसर घटेंगे।
कांग्रेस ने भी सोशल मीडिया पर लिखा कि नरेंद्र मोदी के “एच-1बी सरदार” की फीस अचानक आसमान छू गई है। पार्टी ने व्यंग्य करते हुए कहा कि पहले वीजा का किराया 6 लाख रुपये था। जो अब बढ़कर करीब 88 लाख रुपये हो गया है।
गौरव गोगोई ने उठाए सवाल
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने पीएम मोदी की “रणनीतिक चुप्पी” पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा कि
हालिया फैसला भारत के सबसे प्रतिभाशाली दिमागों पर चोट है।
गोगोई ने याद दिलाया कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उस समय भी निर्भीकता दिखाई थी जब अमेरिका में एक भारतीय राजनयिक के साथ दुर्व्यवहार हुआ था।
उन्होंने कहा कि आज पीएम मोदी की चुप्पी और उनकी चमकदार मंचीय राजनीति, राष्ट्रीय हितों के लिए बोझ बन गई है।
अखिलेश यादव का बयान
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी अमेरिका के फैसले को विदेश नीति की विफलता बताया।
उन्होंने कहा,
अमेरिका पहली बार ऐसा व्यवहार नहीं कर रहा है। हमारी विदेश नीति कमजोर है। हम क्यों बार-बार दूसरे देशों पर निर्भर दिखाई देते हैं? खाद से लेकर व्यापार तक हम पराश्रित होते जा रहे हैं। कल को अगर अन्य देश भी ऐसा करेंगे तो हमारी तैयारी क्या है?”
ट्रंप का तर्क
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि कंपनियां एच-1बी वीजा का दुरुपयोग कर रही हैं और अमेरिकी नागरिकों की नौकरियों को प्रभावित कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि आईटी कंपनियां सस्ते श्रमिकों को भारत जैसे देशों से बुलाकर रोजगार बाजार को प्रभावित करती हैं।
भारत पर असर
(H-1B Visa Fee Hike) के चलते भारतीय आईटी कंपनियों और पेशेवरों पर सीधा असर होगा। अमेरिका में काम करने वाले हजारों भारतीयों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। भारत आने वाले विदेशी मुद्रा प्रवाह में भी गिरावट का खतरा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम भारत के आईटी सेक्टर को कमजोर कर सकता है, जो पहले से ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा से जूझ रहा है।