सीजी भास्कर, 3 नवंबर। बिहार की सियासत रविवार को पूरी तरह मछली के इर्द-गिर्द घूमती नजर आई। एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरा में मंच से मछली उत्पादन (Fish Politics in Bihar) और किसानों की योजनाओं का ज़िक्र कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर बेगूसराय में राहुल गांधी तालाब में मछली पकड़ते हुए नजर आए। मछली के बहाने दोनों नेताओं ने एक-दूसरे पर तीखे राजनीतिक तीर चलाए और बिहार की चुनावी हवा में मछली संदेश तेजी से तैर गया।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में बिहार से जुड़ाव जताते हुए कहा, कभी बिहार को मछली दूसरे राज्यों से मंगानी पड़ती थी, अब बिहार खुद मछली भेजता है। उन्होंने बताया कि जुब्बा सहनी मत्स्य पालन सहायता योजना के तहत मछुआरा परिवारों को 9,000 रुपये की वार्षिक सहायता दी जाएगी। इसके साथ ही उन्होंने किसान सम्मान निधि में 3,000 रुपये की अतिरिक्त राशि जोड़ने का ऐलान किया यानी किसानों को अब सालाना ₹9,000 का लाभ मिलेगा।
मोदी ने कहा कि एनडीए सरकार किसानों और मछुआरों (Fish Politics in Bihar) दोनों की आत्मनिर्भरता की दिशा में काम कर रही है। उन्होंने जोर देकर कहा, अब बिहार सिर्फ उपभोक्ता नहीं, उत्पादक राज्य बन चुका है। उनका यह बयान राज्य के एक विशेष समुदाय के बीच सीधा संदेश माना जा रहा है।
वहीं, दूसरी ओर बेगूसराय में राहुल गांधी, विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी के साथ तालाब में मछली पकड़ते दिखे। कैमरे के सामने जाल फेंकते हुए राहुल बोले बिहार के युवा अब दूसरे राज्यों में मजदूरी करने नहीं जाएंगे। हम यहां रोजगार पैदा करेंगे, ताकि कोई पलायन न करे। उनकी यह तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गई और राजनीतिक हलकों में चर्चा छेड़ गई कि बिहार की राजनीति में अब मछली भी एक प्रतीक बन चुकी है।
मोदी की सभा में जहां किसान सम्मान निधि, वन रैंक वन पेंशन, और मुफ्त राशन में उसना चावल’ जैसी योजनाओं का उल्लेख हुआ, वहीं राहुल गांधी ने शिक्षा, बेरोजगारी और विदेश नीति के मुद्दे उठाए। राहुल ने कहा, “मोदी जी अमेरिका के सामने झुक गए, लेकिन इंदिरा गांधी को कभी कोई झुका नहीं सका। वहीं, मोदी ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस को 1984 के सिख दंगों को नहीं भूलना चाहिए, और महागठबंधन को जंगलराज (Fish Politics in Bihar) की वापसी से जोड़ा। उन्होंने कहा, छठ महापर्व बिहार की आत्मा है, इसे ड्रामा बताने वालों को जनता जवाब देगी।
आरा और बेगूसराय दोनों जिलों में सभाएं भले ही सैकड़ों किलोमीटर दूर थीं, लेकिन दोनों नेताओं के भाषणों में एक-दूसरे के लिए जवाब पहले से तैयार नजर आए। मछली रविवार को बिहार की राजनीति में सिर्फ एक खाद्य पदार्थ नहीं रही बल्कि एक चुनावी प्रतीक बन गई।
