सीजी भास्कर, 6 नवंबर। देश के 12 राज्य इस वित्त वर्ष 2025–26 में महिलाओं के लिए बिना शर्त नकद अंतरण (Unconditional Cash Transfer) योजनाओं पर सामूहिक रूप से 1.68 लाख करोड़ रुपये (Women Cash Transfer Schemes India) खर्च करेंगे। तीन वर्ष पहले यानी 2022–23 में ऐसी योजनाएं केवल दो राज्यों में थीं।
थिंक टैंक PRS Legislative Research की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि इन 12 राज्यों में से छह ने इस वित्त वर्ष के लिए राजस्व घाटे का अनुमान लगाया है। रिपोर्ट के अनुसार, महिला-केंद्रित योजनाओं पर बढ़ता व्यय राज्यों के राजकोष पर दबाव डाल रहा है, हालांकि यूसीटी योजनाओं को हटाकर देखा जाए तो राजकोषीय स्थिति में सुधार दिखता है। इन योजनाओं का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को हर महीने निश्चित राशि देकर सशक्त बनाना (Women Cash Transfer Schemes India) है। लाभार्थियों का चयन आय सीमा, आयु वर्ग और अन्य सामाजिक मानदंडों के आधार पर किया जाता है।
तमिलनाडु और एमपी ने बढ़ाया आवंटन
रिपोर्ट के अनुसार, असम और पश्चिम बंगाल ने महिला नकद सहायता योजनाओं में बजटीय आवंटन में क्रमशः 31% और 15% की वृद्धि की है। तमिलनाडु की “कलैगनार मगलिर उरीमई थोगई थित्तम”, मध्य प्रदेश की “लाड़ली बहना योजना” और कर्नाटक की “गृह लक्ष्मी योजना” प्रमुख रूप से शामिल हैं। इन योजनाओं के तहत पात्र महिलाओं को ₹1,000 से ₹1,500 प्रति माह की नकद सहायता दी जाती है। राज्य सरकारें इन योजनाओं को महिला सशक्तिकरण और घरेलू आय समर्थन का माध्यम मान रही हैं।
RBI ने भी जताई चिंता
PRS रिपोर्ट के अनुसार, इन योजनाओं से कई राज्यों की राजस्व स्थिति कमजोर हो रही है। यदि इन योजनाओं को बंद किया जाए तो कर्नाटक का राजस्व घाटा 0.6% से घटकर 0.3% अधिशेष, जबकि मध्य प्रदेश का 0.4% से बढ़कर 1.1% अधिशेष हो सकता है। रिज़र्व बैंक पहले ही चेतावनी दे चुका है कि महिलाओं, युवाओं और किसानों के लिए सब्सिडी व नकद सहायता पर बढ़ता खर्च उत्पादक निवेश के लिए राजकोषीय गुंजाइश घटा सकता है।
कुछ राज्यों ने लागत नियंत्रण के तहत बदलाव किए हैं जैसे महाराष्ट्र ने मुख्यमंत्री लाडकी बहिन योजना के भुगतान में कटौती की, जबकि झारखंड ने मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के तहत भुगतान बढ़ाकर ₹2,500 प्रति माह कर दिया।
