सीजी भास्कर, 9 नवंबर। ग्रामीणों ने एक बार फिर यह साबित (Abujhmad Road Construction) कर दिया है कि जब इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो विकास की राह खुद तैयार की जा सकती है। सरकारी उदासीनता और वर्षों से अधूरी पड़ी विकास की उम्मीदों के बीच बड़ेकरका गांव से लेकर कोशलनार टू तक 12 किलोमीटर लंबी सड़क ग्रामीणों ने श्रमदान (Shramdaan) से खुद बनाकर एक मिसाल कायम की है।
अबूझमाड़ से सटे सीमावर्ती इलाकों में यह सड़क निर्माण कार्य कोशलनार-1, कोशलनार-2 और हांदावाड़ा पंचायत के कुरसिंग बाहार गांव के ग्रामीणों ने मिलकर किया। ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने यह फैसला तब लिया जब कई वर्षों की मांग के बावजूद न तो सड़क बनी और न ही प्रशासनिक अमला इस दिशा में गंभीर हुआ।
नाराज ग्रामीणों ने उठाया खुद निर्माण का जिम्मा
ग्रामीणों के अनुसार, इलाके में नक्सल गतिविधियों (Naxal Area Development) में कमी आने के बाद भी शासन-प्रशासन ने सड़क निर्माण की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। कई बार विधायक, कलेक्टर और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई। परिणामस्वरूप ग्रामीणों ने सरकारी मदद का इंतजार छोड़ स्वयं श्रमदान के माध्यम से सड़क बनाने का निर्णय लिया। गांव वालों का कहना है कि सड़क नहीं होने के कारण वे जिला मुख्यालय, राशन दुकान या स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचने के लिए 12 किलोमीटर का पहाड़ी रास्ता पैदल तय करते थे। कई बार मरीजों को चारपाई पर उठाकर ले जाना पड़ता था।
(Abujhmad Road Construction) बरसात में बंद हो जाता था रास्ता
बरसात के मौसम में यह मार्ग पूरी तरह बंद हो जाता था। पानी भरने और मिट्टी कटने की वजह से गांव तक पहुंचना नामुमकिन हो जाता था। नतीजतन न तो राशन समय पर पहुंच पाता था, न ही एंबुलेंस गांव तक आ पाती थी। शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं भी प्रभावित होती थीं। यही वजह रही कि तीनों पंचायतों के ग्रामीणों ने मिलकर इस सड़क को खुद बनाने का बीड़ा उठाया।
ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने श्रमदान के जरिए सड़क (Abujhmad Road Construction) को तीन दिनों में पूरा करने का लक्ष्य रखा था। सड़क का निर्माण पूरा होते ही अब गांव तक जरूरी सेवाएं और वाहनों की आवाजाही संभव हो गई है। ग्रामीणों का कहना है कि वे अब शासन-प्रशासन से उम्मीद करते हैं कि इस सड़क को पक्का करवाने और अन्य सुविधाओं से जोड़ने की दिशा में कदम उठाए जाएं।
हमने खुद अपने हाथों से विकास की राह बनाई
स्थानीय ग्रामीण रामू कोर्राम ने कहा, “हम सालों से सरकार से सड़क की मांग कर रहे थे, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। आखिर हमने खुद ही फावड़ा उठाया और रास्ता बना दिया। अब हमारी मेहनत से गांव तक राशन, स्कूल और स्वास्थ्य सेवाएं पहुंच पाएंगी। यह पहल अबूझमाड़ के अन्य इलाकों के लिए भी प्रेरणा बन रही है। प्रशासनिक लापरवाही के बावजूद ग्रामीणों ने सामूहिक एकता और श्रमदान की मिसाल पेश की है।
