छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में हुई Police Custody Death Case ने प्रशासनिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया है।
19 वर्षीय उमेश सिंह, जो चोरी के एक मामले में हिरासत में था, उसकी मौत के चौथे दिन भी final rites (अंतिम संस्कार) नहीं हो सके हैं।
परिजन अब भी re-postmortem (दोबारा पोस्टमॉर्टम) और compensation (मुआवजा) की मांग पर अड़े हुए हैं।
प्रशासन के लगातार समझाने के बावजूद परिवार शव को दफनाने या जलाने से इनकार कर रहा है।
संभावना जताई जा रही है कि गुरुवार को शव का दोबारा पोस्टमॉर्टम कराया जा सकता है।
चोरी के आरोप में हिरासत, फिर संदिग्ध मौत
यह पूरा मामला बलरामपुर की एक ज्वेलरी शॉप (Jewellery Shop Theft Case) से जुड़ा है,
जहां 30-31 अक्टूबर की रात करीब 50 लाख रुपये के जेवर और नकदी चोरी हो गई थी।
पुलिस ने इस केस में उमेश सिंह समेत नौ लोगों को पकड़ा था।
रविवार को हिरासत के दौरान उमेश की मौत हो गई।
परिजनों का आरोप है कि Police Custody Death Case के पीछे पुलिस की बर्बर पिटाई है,
जबकि पुलिस का कहना है कि युवक Sickle Cell Disease (सिकल सेल रोग) से पीड़ित था और मौत उसी वजह से हुई।
परिजनों ने शव लेने से किया इंकार, प्रशासन असहाय
सोमवार को शव को एंबुलेंस से बतौली भेजा गया, लेकिन परिजनों ने लेने से इनकार कर दिया।
फिलहाल शव राजपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की मॉर्च्युरी में रखा है,
जहां सुरक्षा के लिए CAF jawans (सीएएफ जवान) तैनात किए गए हैं।
परिजनों ने Governor (राज्यपाल) और Chief Minister (मुख्यमंत्री) के नाम ज्ञापन सौंपकर
Judicial Inquiry (न्यायिक जांच), Re-Postmortem और Financial Assistance (आर्थिक सहायता) की मांग की है।
टीआई और तीन आरक्षक लाइन अटैच
बुधवार को परिजनों ने पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के साथ सरगुजा आईजी दीपक कुमार झा से मुलाकात की।
आईजी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच में शामिल TI (थाना प्रभारी) और तीन आरक्षकों को Line Attach (लाइन अटैच) कर दिया है।
पुलिस विभाग ने कहा है कि जांच निष्पक्ष रूप से की जाएगी,
और दोषी पाए जाने पर Departmental Action (विभागीय कार्रवाई) से भी पीछे नहीं हटा जाएगा।
परिजन बोले—“यह बीमारी नहीं, हत्या है”
मृतक उमेश सिंह के परिजनों का कहना है कि पुलिस ने उसे बेरहमी से पीटा,
और अब medical reason (बीमारी) का बहाना बनाकर मामला दबाने की कोशिश की जा रही है।
वे इसे Murder in Custody (हिरासत में हत्या) बता रहे हैं और
One Crore Compensation (एक करोड़ मुआवजे) की मांग पर अड़े हैं।
वहीं, पुलिस रिकॉर्ड में उमेश को habitual offender (आदतन अपराधी) बताया गया है,
जिसके खिलाफ चोरी के कई केस पहले से दर्ज थे।
अब पूरा जिला इस सवाल में उलझा है—क्या यह बीमारी से हुई मौत थी या फिर वर्दी की ताकत का शिकार एक और आम इंसान?
यह Police Custody Death Case सिर्फ एक जिला नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाता है।
एक ओर पुलिस अपनी सफाई दे रही है, तो दूसरी ओर परिवार न्याय की उम्मीद में ठहरा हुआ है।
अब निगाहें पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और न्यायिक जांच के नतीजे पर हैं, जो तय करेंगे कि यह मौत थी या “मौत के नाम पर सच्चाई की हत्या।”
