कानपुर में 1998 के एक पुराने विवाद का फैसला जिस अंदाज में हुआ, उसने कानूनी हलकों में चर्चा छेड़ दी है। (Kanpur symbolic punishment) के तहत अदालत ने 27 साल बाद मामले पर सुनवाई करते हुए आरोपी दंपती को कटघरे में कुछ समय खड़े रहने की सजा सुनाई और ₹3,500 का जुर्माना भरवाकर मामले का निपटारा कर दिया। जुर्माना जमा होने के बाद शाम तक कोर्ट ने दोनों को राहत भी दे दी।
Kanpur symbolic punishment : शिकायत में लोहे की सरिया से हमले का आरोप
यह मामला मार्च 1998 का है। उस वक्त संतोष कुमार ने अपने चाचा कन्हई लाल और चाची उर्मिला देवी पर लोहे की सरिया से हमला करने का आरोप लगाया था। शिकायत के मुताबिक, 2 मार्च की शाम वह घर के बाहर बैठा था तभी अचानक दंपती ने उस पर हमला कर दिया, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं। मेडिकल जांच की रिपोर्ट आने के बाद पुलिस ने मारपीट, धमकी और धारदार हथियार से चोट पहुंचाने जैसी धाराओं में मामला दर्ज किया था। बाद में केस न्यायालय पहुंचा और लंबी प्रक्रिया शुरू हुई।
27 साल तक तारीखों में लटका रहा केस
करीब तीन दशकों तक यह मामला अलग-अलग वजहों से लंबित पड़ा रहा। कई बार तारीखें बढ़ीं, कई बार सुनवाई आगे सरकती रही, और मामला धीरे-धीरे कागजों में दबकर ठहर गया। हाल की सुनवाई में जब आरोपी दंपती ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए दया की अर्जी लगाई, तो अदालत ने परिस्थितियों को देखते हुए (symbolic punishment) यानी सांकेतिक सजा देने का फैसला लिया। साथ ही यह भी कहा गया कि जुर्माना न देने पर उन्हें सात दिन का कारावास भुगतना होगा। हालांकि, दंपती ने तत्काल तय राशि जमा कर दी।
Kanpur symbolic punishment : फैसले से फिर शुरू हुई ‘दंड बनाम सुधार’ की बहस
इस मामले ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया कि पुराने और छोटे अपराधों में अदालत किस हद तक सुधारात्मक दृष्टिकोण अपना सकती है। कई विशेषज्ञ इसे न्यायिक प्रणाली में लंबित मामलों को खत्म करने की एक व्यावहारिक कोशिश बता रहे हैं, वहीं वादी संतोष कुमार इस फैसले से असंतुष्ट दिखे और उन्होंने कहा कि इतनी गंभीर चोटों के बाद सिर्फ जुर्माना और खड़े रहने की सजा काफी नहीं है। उन्होंने साफ किया है कि वह फैसले के खिलाफ अपील की तैयारी कर रहे हैं।
लंबित मामलों के बोझ का संकेत भी देता है फैसला
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला न सिर्फ (Kanpur court case) की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वर्षों पुराने मामलों में साक्ष्य और गवाहों की उपलब्धता किस तरह प्रभावित हो जाती है। प्रशासन की ओर से भी कहा गया कि कोर्ट का आदेश पूरी तरह लागू कर दिया गया है और भविष्य में इस मामले से जुड़े किसी भी कानूनी कदम का फैसला न्यायालय ही करेगा।
