सीजी भास्कर, 2 दिसंबर | छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने Cruelty Divorce Case Chhattisgarh में एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि जब किसी कथित क्रूरता को पति स्वयं माफ कर चुका हो, तो वह तलाक का आधार नहीं बन सकता। जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल ने यह भी कहा कि बिना ठोस प्रमाणों के “मानसिक क्रूरता” का दावा टिक नहीं सकता, और ऐसे ही एक मामले में पति की अपील को खारिज कर दिया गया।
शादी, बेटी का जन्म और बढ़ता तनाव—केस की पृष्ठभूमि
मामला जांजगीर के युवक और मुंगेली जिले की सरगांव निवासी महिला से जुड़ा है। 11 दिसंबर 2020 को शादी हुई, और अक्टूबर 2022 में बेटी पैदा हुई। इसके बाद, पति-पत्नी के बीच मनमुटाव बढ़ता गया।
पति ने आरोप लगाया कि उसे तीन अलग-अलग नंबरों से गालियां दी गईं और अश्लील वीडियो वायरल करने की धमकी भी मिली। पति का यह भी कहना था कि 29 मार्च 2023 को उसकी पत्नी बिना बताए घर छोड़कर चली गई।
फैमिली कोर्ट ने कहा—क्रूरता साबित नहीं, आवेदन खारिज
4 अप्रैल 2023 को पति ने cruelty allegation under Hindu Marriage Act के तहत तलाक की मांग करते हुए आवेदन दिया था। दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद फैमिली कोर्ट ने 20 अगस्त 2024 को यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि—“पति के दावे को सिद्ध करने वाले कोई पुख्ता दस्तावेज़ या सबूत प्रस्तुत नहीं किए गए।”
पति ने इसी फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
पति का दावा—तीन सिम कार्ड, धमकियां और घर छोड़कर जाना
अपील में पति ने कहा कि नवंबर 2022 की एक सामाजिक बैठक में पत्नी के पास से तीन सिम कार्ड मिले थे।
उसने आरोप लगाया कि 16 मार्च 2023 को पत्नी ने उस पर झूठे दहेज और टोनही (witchcraft) के मामले में फंसाने की धमकी दी। उसके अनुसार, इसी कारण माहौल बिगड़ता गया और अंततः पत्नी मायके चली गई।
पत्नी ने कहा—साथ रहना चाहती हूं, पति अलग रहने की कोशिश कर रहा थ
पत्नी ने हाईकोर्ट को बताया कि उसके ऊपर लगाए सारे आरोप बेबुनियाद हैं। उसने कहा कि पति का अपने परिवार में पहले से विवाद चल रहा था, और इसी वजह से वह अलग रहना चाहता था।
महिला ने अदालत में साफ कहा कि वह आज भी अपने पति के साथ रहने को तैयार है और विवाह बचाना चाहती है।
पति की दलीलें नहीं टिक सकीं—मानसिक क्रूरता सिद्ध नहीं
दोनों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट निष्कर्ष दिया। कोर्ट ने कहा कि—
यदि कोई घटना हुई भी हो, तो पति ने बाद में उसे पूरी तरह माफ कर दिया था। और हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 23(1)(b) के अनुसार, माफ की गई क्रूरता तलाक का आधार नहीं बन सकती।
इसके अलावा, नवंबर 2022 से 29 मार्च 2023 तक पति-पत्नी साथ रहे, जिससे यह साबित होता है कि किसी भी कथित मानसिक क्रूरता को पति ने स्वीकार कर लिया था।
इस आधार पर, कोर्ट ने पति की अपील को खारिज कर दिया।
