सीजी भास्कर, 12 दिसंबर। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चार साल बाद भारत पहुंचे, दिल्ली ने रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत किया लेकिन सबसे ज़्यादा बेचैनी इस समय इस्लामाबाद (Putin India Visit) में देखी जा रही है। दिलचस्प यह कि पाकिस्तान चिंतित है, जबकि उसका पड़ोसी अफगानिस्तान का तालिबान शासन इस दौरे से खुलकर खुश है। हाँ, वही तालिबान जिसे अब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिली, लेकिन नई वैश्विक राजनीति में रूस और भारत का रुख उसके लिए वरदान साबित होता दिख रहा है।
दिल्ली में भारतीय मीडिया से बातचीत करते हुए पुतिन ने तालिबान पर साफ और अप्रत्याशित बयान दिया। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान पूर्ण नियंत्रण में है और यह वास्तविकता स्वीकार करनी होगी। पुतिन ने दावा किया कि तालिबान आतंकवाद (Putin India Visit) पर कार्रवाई कर रहा है, ISIS और अन्य नेटवर्क पर दबाव बना रहा है तथा अफीम उत्पादन में भारी कमी आई है। यह बयान तालिबान के लिए अनौपचारिक समर्थन की तरह देखा जा रहा है।
दिल्ली में आयोजित 23वें भारत–रूस शिखर सम्मेलन के बाद दोनों देशों ने अफगानिस्तान पर संयुक्त रुख अपनाया। बयान में कहा गया कि आतंकवाद (Putin India Visit) के खिलाफ समावेशी नीति बने, ISIS-K पर कड़ा प्रहार हो, मानवीय सहायता निर्बाध जारी रहे और सुरक्षा परिषद स्तर पर संपर्क बना रहे।
यह साझी रणनीति तालिबान के लिए राजनीतिक लाभ का रास्ता बनाती है क्योंकि भारत और रूस की एकजुट स्थिति उसे वैधता की ओर आगे बढ़ाती है। अफगानिस्तान इसलिए प्रसन्न है क्योंकि रूस की मान्यता उसके लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान का आधार बनती है, भारत–रूस का समर्थन उसे वज़न देता है। (Putin India Visit)
इस्लामाबाद की चिंता यहीं से शुरू होती है — अफगानिस्तान पर पाकिस्तान की वर्षों पुरानी रणनीतिक पकड़ ढीली पड़ती दिख रही है। काबुल में भारत और रूस का प्रभाव बढ़ना पाकिस्तान (Putin India Visit) की पारंपरिक डिप्लोमेसी को चुनौती देता है। आतंकवाद के खिलाफ भारत–रूस सहयोग पाकिस्तान की भूमिका को सीमित करता है और दक्षिण एशिया की शक्ति-संतुलन व्यवस्था उसे लेकर असहज बनाती है।


