Srinivasan Death Malayalam Cinema: मलयालम फिल्म इंडस्ट्री आज एक ऐसे कलाकार को खो बैठी है, जिसकी मौजूदगी अक्सर पर्दे से ज्यादा कहानी में महसूस होती थी। अभिनेता, लेखक और निर्देशक श्रीनिवासन के निधन की खबर ने सिनेमा प्रेमियों को भीतर तक झकझोर दिया। 69 वर्ष की उम्र में उन्होंने त्रिपुनिथुरा तालुक अस्पताल में अंतिम सांस ली, जहां वे लंबे समय से स्वास्थ्य समस्याओं के चलते इलाजरत थे.
अचानक बिगड़ी तबीयत, थम गई रचनात्मक यात्रा
करीब चार दशकों तक मलयालम सिनेमा को दिशा देने वाले श्रीनिवासन की तबीयत हाल के दिनों में लगातार नाजुक बनी हुई थी। अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। उनके जाने से इंडस्ट्री में एक ऐसा खालीपन बन गया है, जिसे भर पाना आसान नहीं होगा.
थालास्सेरी से फिल्मी दुनिया तक का सफर
6 अप्रैल 1956 को केरल के थालास्सेरी में जन्मे श्रीनिवासन ने 1977 में फिल्मी दुनिया में कदम रखा। अभिनय से शुरुआत करने वाले इस कलाकार ने जल्द ही लेखन और निर्देशन में भी अपनी अलग पहचान बना ली। वे उन चुनिंदा रचनाकारों में रहे, जिन्होंने आम आदमी की कहानियों को सिनेमा का चेहरा बनाया .
केवल अभिनेता नहीं, विचारों के निर्देशक
श्रीनिवासन सिर्फ कैमरे के सामने नजर आने वाले कलाकार नहीं थे। उन्होंने कई फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी, निर्देशन किया और निर्माता के रूप में भी योगदान दिया। उनकी रचनाओं में सामाजिक व्यंग्य, मानवीय संवेदना और सहज हास्य का संतुलन साफ दिखाई देता था—यही वजह है कि उनकी फिल्मों को राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिला.
मामूट्टी–मोहनलाल के साथ यादगार फिल्में
अपने 48 साल के करियर में श्रीनिवासन ने मलयालम सिनेमा के दिग्गजों के साथ काम किया। मामूट्टी और मोहनलाल जैसे सितारों के साथ उनकी फिल्में आज भी दर्शकों की पसंद बनी हुई हैं। ‘सनमासुल्लावरकु समथम’, ‘टीपी बालगोपालन एमए’, ‘नाडोटीकट्टू’, ‘गांधीनगर सेकेंड स्ट्रीट’ और ‘थलायण मंत्रम’ जैसी फिल्में उनके लेखन की गहराई को दर्शाती हैं।
निर्देशन में भी छोड़ी गहरी छाप
निर्देशक के तौर पर श्रीनिवासन की फिल्में अलग पहचान रखती थीं। ‘वडक्कुनोक्कियंथ्रम’ और ‘चिंताविष्टया श्यामला’ जैसी फिल्मों ने न सिर्फ दर्शकों का दिल जीता, बल्कि अवॉर्ड्स की फेहरिस्त में भी जगह बनाई। इन फिल्मों में रिश्तों और समाज को देखने का उनका नजरिया साफ झलकता था .
सोशल मीडिया पर शोक की लहर
उनके निधन के बाद कलाकारों और प्रशंसकों ने सोशल मीडिया पर यादों और शब्दों के जरिए श्रद्धांजलि दी। कई लोगों ने उन्हें “मलयालम सिनेमा की आत्मा” बताया, तो कुछ ने कहा कि उनकी लिखी कहानियां आने वाली पीढ़ियों को सिखाती रहेंगी।
एक युग का अंत, यादों की शुरुआत
श्रीनिवासन का जाना सिर्फ एक व्यक्ति का जाना नहीं है, बल्कि उस सोच का विदा होना है जिसने मलयालम सिनेमा को संवेदनशील, सादा और सशक्त बनाया। उनकी फिल्में और कहानियां आने वाले समय में भी दर्शकों के बीच जिंदा रहेंगी।


