सीजी भास्कर, 4 नवंबर। नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ (Abujhmad Development Story) के जंगलों में अब बंदूकों की आवाज नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और विकास की गूंज सुनाई दे रही है। नारायणपुर जिले के ओरछा ब्लॉक के कच्चापाल गांव ने एक नई कहानी लिखी है भय से विश्वास तक की कहानी, गरीबी से समृद्धि तक की यात्रा। कभी जहाँ शासन की योजनाएँ पहुँचने से डरती थीं, वहीं आज महिलाएँ जैविक खेती, बचत समूह और हुनरमंद उत्पादों के जरिए पूरे क्षेत्र की पहचान बन चुकी हैं।
राज्योत्सव के भव्य मंच पर जब कच्चापाल की आश्रित ग्राम ईरकभट्टी की दो महिलाएं मांगती गोटा और रेनी पोटाई अपने हाथों से उगाई गई जैविक बासमती चावल (Abujhmad Development Story) लेकर पहुंचीं, तो यह केवल एक उत्पाद की प्रदर्शनी नहीं थी, बल्कि आत्मनिर्भरता की सशक्त झलक थी। दोनों महिलाएं ‘बिहान’ योजना के लालकुंवर स्व-सहायता समूह से जुड़ी हैं। कभी गाँव से बाहर न निकलने वाली ये महिलाएँ अब राज्योत्सव में अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के बूते पर सम्मान पा रही हैं।
एरिया कोऑर्डिनेटर सोधरा धुर्वे बताती हैं कि पहले यहाँ सरकारी योजनाएँ पहुँच पाना मुश्किल था। बिचौलियों के कारण किसानों को उनके उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिल पाता था। लेकिन शासन की नियद नेल्ला नार योजना और सशस्त्र बलों की सुरक्षा से ग्रामीणों में विश्वास लौटा। अब महिलाएँ बचत कर रही हैं, सामूहिक खेती कर रही हैं और अपने उत्पाद सीधे बाजार में बेच रही हैं।
मांगती गोटा ने मुस्कराते हुए कहा हम पहले बिना रासायनिक खाद के खेती करते थे, लेकिन दाम बहुत कम मिलता था। अब प्रशिक्षण और बिहान समूह के जरिए हमारे जैविक बासमती की कीमत 120 रुपये किलो तक पहुँच गई है। लोग इसे शुद्धता के कारण बहुत पसंद कर रहे हैं।
रेनी पोटाई बताती हैं अब हम सिर्फ चावल ही नहीं बेच रहे, बल्कि बांस की टोकनी और झाड़ू भी बना रहे हैं। इस साल हमारे समूह ने 40 क्विंटल से अधिक जैविक बासमती का उत्पादन किया है। अबूझमाड़ के इस छोटे से गाँव में आज सुशासन और स्वावलंबन का नया सूरज उग चुका है (Abujhmad Development Story)। जहां कभी हिंसा का डर था, वहाँ अब महिलाओं के आत्मविश्वास की आवाज है। यह कहानी सिर्फ कच्चापाल की नहीं, बल्कि उस ‘नए छत्तीसगढ़’ की है जो भय से विश्वास और पिछड़ेपन से प्रगति की ओर अग्रसर है।
