नई दिल्ली | 15 जुलाई 2025 — ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) का पंजीकरण रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम टिप्पणी करते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि केवल किसी पार्टी का अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात करना, संविधान का उल्लंघन नहीं है।
क्या थी याचिका?
याचिकाकर्ता तिरुपति नरसिंह मुरारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर AIMIM पर आरोप लगाया कि यह पार्टी धार्मिक आधार पर वोट मांगती है, जो भारतीय संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने AIMIM की मान्यता रद्द करने की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने साफ कहा:
- किसी भी पार्टी का यह कहना कि वह संविधान द्वारा प्रदत्त अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करेगी, संविधान के खिलाफ नहीं है।
- AIMIM का संविधान भारत के संविधान के दायरे में है और ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला कि वह राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल है।
- जाति और धर्म पर आधारित राजनीति दोनों ही खतरनाक हो सकती हैं, लेकिन इसके लिए सुधार की जरूरत व्यापक स्तर पर है।
धार्मिक शिक्षा और संविधान
वकील विष्णु जैन ने दलील दी कि AIMIM इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देने की बात करती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि –
“पुराने धार्मिक ग्रंथों या किसी भी आध्यात्मिक शिक्षा में कोई बुराई नहीं है, बशर्ते वह संविधान की सीमाओं में हो।”
साथ ही अदालत ने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग यदि किसी धार्मिक आधार पर आपत्ति जताता है तो उचित कानूनी मंच पर चुनौती दी जा सकती है।
मुसलमानों के लिए अलग प्रयास पर क्या कहा?
वकील ने सवाल किया कि AIMIM सिर्फ मुसलमानों के बीच एकता की बात क्यों कर रही है? इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा:
“संविधान के अनुच्छेद 8 के तहत ऐसे प्रयास की छूट दी गई है। किसी खास समुदाय के अधिकारों की रक्षा करना संविधान के विरुद्ध नहीं है।”