सीजी भास्कर, 30 जुलाई : बस्तर संभाग के जगदलपुर जिले में पदस्थ खंड शिक्षा अधिकारी (बीईओ) मानसिंह भारद्वाज के निलंबन आदेश को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि कलेक्टर को बीईओ जैसे क्लास-2 अधिकारियों को निलंबित करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर यह आदेश पारित किया, जो विधि विरुद्ध है। कोर्ट ने इस आदेश को शून्य घोषित करते हुए रद्द कर दिया।
याचिकाकर्ता मानसिंह भारद्वाज जगदलपुर विकासखंड में बीईओ के पद पर पदस्थ हैं। उनके खिलाफ उच्च कार्यालय को युक्तियुक्तकरण के संबंध में गलत जानकारी भेजने का आरोप लगाते हुए प्रभारी कलेक्टर द्वारा निलंबन आदेश जारी किया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कलेक्टर न तो बीईओ के नियुक्ति प्राधिकारी हैं और न ही उन्हें निलंबन का अधिकार है। यह अधिकार केवल संभागीय आयुक्त अथवा स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव के पास निहित है।
अधिनस्थ अधिकारी ने किए दस्तखत, नियमों का किया उल्लंघन-
हाई कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की, कि निलंबन आदेश पर कलेक्टर के हस्ताक्षर नहीं थे। उस समय कलेक्टर अवकाश पर थे और जिला पंचायत सीईओ प्रभारी कलेक्टर के रूप में कार्यरत थे। सीईओ ने ही निलंबन आदेश पर हस्ताक्षर किए। कोर्ट ने इसे नियमों का स्पष्ट उल्लंघन माना। निलंबन जैसी कठोर कार्रवाई में यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्राधिकारी विधि द्वारा प्रदत्त अधिकारों का पालन करे, अन्यथा आदेश असंवैधानिक और शून्य हो जाता है।
न कारण बताओ नोटिस, न सुनवाई का दिया अवसर-
मानसिंह भारद्वाज ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि वे 2 जून से 6 जून 2025 तक भतीजे की शादी में शामिल होने सिवनी (मप्र) गए थे। उन्होंने पूर्व स्वीकृत अवकाश लिया था, लेकिन 4 जून को अचानक उनकी छुट्टी निरस्त कर दी गई और 5 जून को उपस्थित होने का आदेश जारी किया गया। लौटने से पहले ही 6 जून को उनका निलंबन आदेश पारित कर दिया गया। न तो उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया गया और न ही व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर मिला।
सिंगल बेंच ने खारिज की थी याचिका, डिवीजन बेंच ये मिली राहत-
इससे पूर्व हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने भारद्वाज की याचिका खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ उन्होंने डिवीजन बेंच में अपील दाखिल की। डिवीजन बेंच ने मामले की गंभीरता को समझते हुए आदेश को विधि विरुद्ध मानते हुए निरस्त कर दिया। हालांकि, हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि संभागीय आयुक्त चाहें तो वे नियमों के तहत उचित प्रक्रिया अपनाते हुए दो सप्ताह के भीतर आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं।