सीजी भास्कर, 7 नवंबर | Chhattisgarh Food Inspector Case : छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बिलासपुर (Bilaspur) से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने “न्याय में इंसानियत (Humanitarian Justice)” का उदाहरण पेश किया है।
यहां एक फूड इंस्पेक्टर (Food Inspector) को 22 साल पुराने मामले के चलते नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था।
लेकिन अब हाईकोर्ट (High Court Decision) ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि जब अपराध हुआ था, तब युवक नाबालिग (Juvenile Justice) था, इसलिए उसकी बर्खास्तगी गलत थी।
2002 में हुआ था झगड़ा, 2024 में चली गई नौकरी
मामला बिलासपुर के पेंड्रा रोड (Pendraroad) का है, जहां रहने वाले प्रहलाद प्रसाद राठौर (Prahlad Prasad Rathore) को
साल 2002 में पड़ोसी से मामूली झगड़े (Old Dispute Case) के चलते केस झेलना पड़ा था।
22 साल बाद, इसी केस का हवाला देते हुए मार्च 2024 में उन्हें सेवा से हटा (Job Termination) दिया गया।
हालांकि, उस समय उनकी उम्र नाबालिग थी और मामला बहुत सामान्य था।
5 साल नौसेना में दी सेवा, फिर बने फूड इंस्पेक्टर
प्रहलाद प्रसाद राठौर ने भारतीय नौसेना (Indian Navy Service) में 5 वर्ष तक सेवा (Defense Service Record) दी थी।
इसके बाद 30 अगस्त 2018 को वे भूतपूर्व सैनिक कोटे (Ex-servicemen Quota) से फूड इंस्पेक्टर नियुक्त (Food Inspector Appointment) हुए थे।
कई वर्षों तक उन्होंने अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाई, परंतु पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट (Police Verification Report) के दौरान पुराने केस का जिक्र आने पर
15 मार्च 2024 को विभाग ने उन्हें बर्खास्त कर दिया।
बर्खास्तगी के खिलाफ कोर्ट पहुंचे, पहली याचिका हुई खारिज
प्रहलाद ने बर्खास्तगी के खिलाफ हाईकोर्ट (High Court Petition) में याचिका दायर की थी,
परंतु जनवरी 2025 में सिंगल बेंच ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
इसके बाद उन्होंने डिवीजन बेंच (Division Bench Appeal) में अपील की और बताया कि
2002 का केस (Old Criminal Case) केवल पड़ोसी के साथ हुए झगड़े का था,
जिसका 2007 में निपटारा (Case Closure) हो चुका है और उसमें कोई दोष सिद्ध नहीं हुआ था।
बचपन के अपराध पर नहीं लगाई जा सकती आजीवन सजा: कोर्ट
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा (Chief Justice Ramesh Sinha) और जस्टिस बी.डी. गुरु (Justice BD Guru) की डिवीजन बेंच ने कहा —
“किसी व्यक्ति को उस अपराध के लिए हमेशा के लिए दंडित नहीं किया जा सकता,
जो उसने नाबालिग उम्र में किया हो।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Juvenile Justice Act (जुवेनाइल जस्टिस एक्ट) के तहत
ऐसे व्यक्ति को सभी अयोग्यताओं से छूट मिलती है।
बर्खास्तगी का फैसला बताया मनमाना, कहा – अवसर मिलना चाहिए
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि विभाग ने प्रहलाद राठौर का पक्ष (No Hearing Before Termination)
सुनने का मौका नहीं दिया और बिना किसी स्पष्टीकरण के बर्खास्त कर दिया।
इस तरह का निर्णय न केवल प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के खिलाफ है
बल्कि सेवा नियमों के भी विपरीत है।
फिर से मिलेगी नौकरी, बचपन के झगड़े से मिली राहत
हाईकोर्ट ने विभागीय आदेश को रद्द करते हुए
प्रहलाद प्रसाद राठौर (Prahlad Rathore Reinstated) को फिर से नौकरी देने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा कि 2018 से सेवा दे रहे अधिकारी को
“पुराने बाल अपराध (Old Juvenile Offence)” के आधार पर अयोग्य बताना उचित नहीं है।
अब वे अपनी नौकरी फिर से संभाल सकेंगे।
कानूनी विशेषज्ञ बोले – यह फैसला नजीर बनेगा
कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला Chhattisgarh Food Inspector Case
भविष्य में कई युवाओं के लिए मिसाल बनेगा।
कोर्ट ने साफ किया कि Juvenile Record (नाबालिग रिकॉर्ड) का असर
किसी की सरकारी सेवा पर नहीं होना चाहिए,
जब तक कि उसमें कोई गंभीर अपराध सिद्ध न हुआ हो।
