सीजी भास्कर, 10 नवंबर | छत्तीसगढ़ में अब धर्म और जाति से जुड़े (Chhattisgarh Name Change Initiative) नामों को बदलने की तैयारी शुरू हो चुकी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार से उन सभी गांवों, मोहल्लों, वार्डों और सड़कों की सूची मांगी है, जिनके नाम किसी धर्म, जाति या समुदाय विशेष का संकेत देते हैं। यह कदम ऐसे नामों को बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है, जो समाज में भेदभाव या आपत्ति की भावना उत्पन्न करते हैं।
राज्य शासन ने मांगी रिपोर्ट, नगरीय प्रशासन विभाग को भेजा पत्र
आयोग के निर्देशों के बाद राज्य शासन ने तुरंत Urban Administration Department को पत्र भेजा है। आदेश में कहा गया है कि ऐसे सभी स्थानों की सूची तैयार कर सरकार को सौंपी जाए जिनके नाम धर्म या जाति सूचक हैं। कई जिलों में इस कार्य के लिए टीमें गठित कर दी गई हैं ताकि फील्ड सर्वे के माध्यम से सही और अद्यतन जानकारी मिल सके।
ऐतिहासिक कारणों से जुड़े कई नाम, लेकिन अब बन गए असहज
छत्तीसगढ़ के अधिकतर गांवों के नाम स्थानीय history, nature और social structure से प्रेरित हैं, लेकिन समय के साथ कुछ नाम ऐसे भी रह गए हैं जो अब अपमानजनक या जातिगत भेदभाव को दर्शाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ नामों में दलित या निचली जातियों का संदर्भ खुलकर झलकता है, जो सामाजिक रूप से असमानता का प्रतीक बन चुके हैं।
इन नामों पर उठे सवाल – कई जिलों में अपमानजनक नाम प्रचलित
राज्य के अलग-अलग हिस्सों से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार कई जगहों के नाम सामाजिक असमानता को दर्शाते हैं।
- रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर जिलों में ‘चमार बस्ती’, ‘चमार टोला’ जैसे नाम हैं।
- महासमुंद और जांजगीर-चांपा में ‘भंगी बस्ती’ और ‘भंगी टोला’ नाम प्रचलन में हैं।
- बस्तर और कांकेर में ‘चूहरा टोला’ नाम पाया गया, जो (Religion Caste Names) के आधार पर आपत्तिजनक माने जाते हैं।
- राजनांदगांव और कोरबा में ‘महार वाड़ा’ और ‘महार टोला’ जैसे नाम ऐतिहासिक रूप से उपयोग में हैं, लेकिन अब सामाजिक दृष्टि से इन्हें बदलने की मांग उठ रही है।
समाजशास्त्रियों की राय – नाम बदलना केवल औपचारिकता नहीं
समाजशास्त्रियों का मानना है कि यह प्रक्रिया सिर्फ नाम बदलने की नहीं, बल्कि social identity reform की दिशा में बड़ा कदम है। उनके अनुसार, “जब कोई स्थान जाति के नाम से जुड़ा होता है, तो वहां के लोगों पर उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। यह एक अनदेखा भेदभाव है जिसे मिटाना जरूरी है।”
प्रदेश में बढ़ी जागरूकता, आम लोग भी दे रहे सुझाव
सरकारी आदेश जारी होने के बाद अब कई जिलों में लोग अपने इलाकों के नाम बदलने के सुझाव देने लगे हैं। कई ग्राम पंचायतों ने इस संबंध में प्रस्ताव पास किए हैं। नागरिकों का कहना है कि अगर किसी नाम से किसी वर्ग की भावनाएं आहत होती हैं, तो उसे बदल देना ही बेहतर है।
आने वाले समय में हो सकता है बड़ा बदलाव
नगरीय प्रशासन विभाग के सूत्रों के अनुसार, राज्य में 200 से अधिक स्थानों के नामों की सूची तैयार की जा रही है। रिपोर्ट तैयार होते ही इसे Human Rights Commission को भेजा जाएगा। यह पहल न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी एक model reform policy बन सकती है।
