सीजी भास्कर, 27 नवंबर | खैरागढ़ जिले के नया करेला और आसपास के इलाकों में इन दिनों दूषित पानी (Contaminated Water Issue) ने लोगों को मुश्किल में डाल दिया है। गांव के करीब 50 ग्रामीण उल्टी, दस्त और तेज डायरिया की चपेट में आ गए, जबकि इलाज के दौरान एक व्यक्ति की जान चली गई। स्थानीय लोगों के बीच डर का माहौल है, क्योंकि बीमारी के नए मामले लगातार सामने आ रहे हैं।
31 अक्टूबर की घटना के बाद भी नहीं चेता सिस्टम
लिमउटोला में 31 अक्टूबर को तेज उल्टी-दस्त से समारू गोंड (37) की मौत हुई थी। उस समय भी ग्रामीणों ने साफ कहा था कि पानी की सप्लाई लाइन में लीकेज, नालियों का गंदा पानी और पाइपलाइन की खराब स्थिति इसकी वजह है। उस समय भी सिस्टम की लापरवाही पर उंगलियां उठी थीं, लेकिन शिकायतें फ़ाइलों में ही उलझकर रह गईं।
नया करेला में बिगड़ी हालत, मेडिकल कैंप मजबूरी में लगा
23 नवंबर के बाद अचानक मरीजों की संख्या बढ़ी तो स्वास्थ्य विभाग को मजबूरन इमरजेंसी मेडिकल कैंप लगाना पड़ा। डॉक्टरों की टीम सुबह, शाम और रात तीनों शिफ्ट में तैनात है। गांव के कई घरों में जलस्रोतों के पास बदबू आने और सप्लाई लाइन से विरोधाभासी गंध की शिकायतें मिल रही हैं। ग्रामीणों का कहना है कि कई जगह पाइपलाइन नालियों से सटकर गुजरती है, और वहीं से पानी दूषित होकर घरों तक पहुंच रहा है।
मौत और बीमारी के बाद भी विभाग की धीमी चाल
ग्रामीणों का आरोप है कि मौत के बाद भी न तो पंचायत और न ही संबंधित विभाग ने समय रहते कदम उठाए। लोगों का कहना है—“हर बार बीमारी फैलने के बाद ही इलाके की पाइपलाइन की मरम्मत होती है। अगर पहले ध्यान दिया जाता, तो आज हालात इतने गंभीर नहीं होते।”
वहीं पीएचई विभाग ने अब पानी के नमूने जांच के लिए भेजे हैं और मरम्मत का काम शुरू किया है, लेकिन यह काम बीमारी फैलने के कई दिन बाद शुरू हुआ।
प्रशासन की चुप्पी से बढ़ रहा गुस्सा
ग्रामीणों के मन में यह सवाल लगातार उठ रहा है कि आखिर दूषित पानी (Contaminated Water Crisis) की समस्या कब खत्म होगी। हर साल लोग बीमार पड़ते हैं, शिकायतें होती हैं, लेकिन समाधान का वादा सिर्फ बैठकों तक सीमित रह जाता है।
लोगों का दर्द साफ है—
“हम कब तक ऐसा पानी पीते रहेंगे जिसमें बीमारी ही नहीं, मौत भी छुपी हो?”
