सीजी भास्कर, 20 जुलाई |
रायपुर। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार को दो महीने के भीतर भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापन प्राधिकरण (Land Acquisition Rehabilitation Authority) के गठन का निर्देश दिया है। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर तय समय में प्रक्रिया पूरी नहीं हुई तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यह आदेश ऐसे समय में आया है जब राज्य में सैकड़ों किसान और भूमि मालिक मुआवज़ा व ब्याज के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं।
क्या है मामला?
सारंगढ़-बिलाईगढ़ निवासी बाबूलाल द्वारा एडवोकेट अभिनव श्रीवास्तव के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि राज्य में 2018 से लेकर अब तक प्राधिकरण का गठन नहीं हुआ, जिससे हज़ारों आवेदन अधर में लटके हुए हैं।
राज्य सरकार की सफाई और कोर्ट की टिप्पणी
राज्य सरकार ने अदालत में कहा कि 28 अप्रैल 2025 से प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, जबकि यह मामला टालने लायक नहीं है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने आदेश में कहा –
“राज्य सरकार प्राधिकरण के गठन को हर हाल में 2 महीने के भीतर पूरा करे, वरना कानूनी कार्रवाई तय है।”
कब से अटका है मामला?
- 2018 में नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू किया गया था।
- कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को मुआवजा या ब्याज से संबंधित विवाद की स्थिति में एक साल के भीतर न्याय मिलना चाहिए।
- लेकिन प्राधिकरण के अभाव में यह प्रक्रिया ठप पड़ी हुई है।
- कई जिलों में लोग पिछले 5 साल से फाइलें लेकर चक्कर काट रहे हैं।
किसानों और ज़मीन मालिकों के अधिकार सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस आदेश के बाद भी किसी भी व्यक्ति का मुआवज़ा या ब्याज लेने का अधिकार समाप्त नहीं होगा। अगली सुनवाई 15 सितंबर 2025 को होगी, जिसमें राज्य सरकार की प्रगति का मूल्यांकन किया जाएगा।
हाईकोर्ट ने पहले कर दी थी याचिका खारिज
बाबूलाल ने पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी, जिसे अदालत ने जनहित का मामला मानने से इनकार करते हुए खारिज कर दिया था। इसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया।