रायपुर: Custom Milling Scam Mastermind Anil Tuteja (कस्टम मिलिंग घोटाले का मास्टरमाइंड अनिल टूटेजा) के खिलाफ जांच एजेंसी ने बड़ा कदम उठाया है। आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) ने विशेष अदालत में 1500 पन्नों का पूरक चालान पेश किया है। इस मामले में पूर्व IAS अधिकारी अनिल टूटेजा और कारोबारी अनवर ढेबर दोनों रायपुर की केंद्रीय जेल में बंद हैं।
फरवरी 2025 में दर्ज हुआ था पहला चालान
इससे पहले फरवरी 2025 में राइस मिल एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष रोशन चंद्राकर और मार्कफेड के पूर्व एमडी मनोज सोनी के खिलाफ पहला चालान दाखिल किया गया था। पूरक चालान में साफ लिखा है कि Anil Tuteja (Custom Milling Scam Mastermind) ने राइस मिलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों के साथ षड्यंत्र रचकर इस पूरे घोटाले को अंजाम दिया।
राइस मिलरों से अवैध वसूली का आरोप
EOW की जांच रिपोर्ट में दावा किया गया कि राइस मिलर्स से 20 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वसूली की गई। यह रकम लगभग 20 करोड़ रुपये तक पहुंची। जांच में सामने आया कि जिला विपणन अधिकारियों पर दबाव बनाकर मिलरों के बिल रोके जाते थे और मजबूरी में वे अवैध भुगतान करते थे। (Focus keyphrase: Custom Milling Scam Mastermind Anil Tuteja)
अनवर ढेबर की भूमिका भी हुई उजागर
पूरक चालान में कारोबारी अनवर ढेबर की अहम भूमिका सामने आई। आरोप है कि उन्होंने न केवल कस्टम मिलिंग में वसूली की रकम को संभाला, बल्कि उसका उपयोग निवेश और अन्य खर्चों में भी किया। डिजिटल सबूतों से यह भी प्रमाणित हुआ कि अनवर ढेबर शराब घोटाले से लेकर पीडब्ल्यूडी और वन विभाग जैसे कई कामों पर सीधा प्रभाव डालते थे।
कांग्रेस कोषाध्यक्ष और अन्य पर भी जांच जारी
पूरक चालान में यह भी उल्लेख है कि कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल समेत कई अन्य लोगों की भूमिका संदिग्ध है। जांच एजेंसी ने साफ किया कि आगे और नामों की परतें खुल सकती हैं। (Custom Milling Scam Mastermind Anil Tuteja)
जनवरी 2024 में हुई थी FIR
इस घोटाले की शुरुआत जनवरी 2024 में हुई, जब पहली एफआईआर दर्ज की गई। इसमें अनिल टूटेजा, अनवर ढेबर, रोशन चंद्राकर, मनोज सोनी और अन्य नेताओं-अफसरों के नाम शामिल थे। जांच में यह बात सामने आई कि मिलर्स को भुगतान बढ़ाने का फायदा उठाकर करोड़ों की वसूली की गई।
140 करोड़ रुपए से ज्यादा की अवैध वसूली
EOW की रिपोर्ट के मुताबिक इस पूरे खेल में 140 करोड़ रुपए से ज्यादा की अवैध रकम इकट्ठा की गई। अफसरों से लेकर मिलर्स एसोसिएशन तक, सभी की संलिप्तता सामने आई। जो मिलर्स वसूली देने से इनकार करते थे, उनके बिल लंबित रखे जाते थे।