केंद्र ने कहा, घातक इंजेक्शन देना व्यावहारिक नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कहा “समय के साथ बदलाव जरूरी।”
मामला अब 11 नवंबर को फिर सुना जाएगा।
सीजी भास्कर, 16 अक्टूबर। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक अहम मुद्दे पर अपना पक्ष रखा है। उसने कहा है कि मौत की सजा पाए दोषियों को फांसी के बजाय (Death Penalty Debate) घातक इंजेक्शन देने का विकल्प प्रदान करना व्यावहारिक नहीं हो सकता। केंद्र की इस टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं दिख रही है।
जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें फांसी पर लटकाकर मृत्युदंड देने की मौजूदा प्रक्रिया को हटाने का अनुरोध किया गया था। याचिकाकर्ता वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने दलील दी कि दोषी को कम से कम यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि वह फांसी चाहता है या (Death Penalty Debate) घातक इंजेक्शन। उन्होंने कहा कि मृत्युदंड का सबसे मानवीय तरीका घातक इंजेक्शन है, जिसे अमेरिका के 50 में से 49 राज्यों ने अपनाया है। उनका तर्क था कि यह तरीका त्वरित, सभ्य और मानवीय है, जबकि फांसी देना क्रूर और बर्बर परंपरा है, जिसमें शव लगभग 40 मिनट तक रस्सी पर लटका रहता है।
जस्टिस संदीप मेहता ने केंद्र के वकील को सुझाव दिया कि वह इस प्रस्ताव पर सरकार को सलाह दें, जिससे मौत की सजा पाए दोषियों को विकल्प देने की प्रक्रिया पर विचार हो सके। इस पर केंद्र सरकार के वकील ने जवाबी हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि ऐसा विकल्प देना संभवतः बहुत व्यावहारिक नहीं होगा। इस पर जस्टिस मेहता ने कहा कि “समस्या यह है कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं है… समय बदल गया है, दृष्टिकोण भी बदलना चाहिए।”
केंद्र के वकील ने अदालत को बताया कि यह एक नीतिगत मामला है और इस पर निर्णय सरकार ही ले सकती है। उन्होंने कहा कि मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की दलील पर विचार करते हुए सरकार को एक समिति गठित करने का सुझाव दिया था, जो इस विषय पर समीक्षा करेगी। अब सरकार से यह निर्देश लिया जाएगा कि समिति के गठन और रिपोर्ट की वर्तमान स्थिति क्या है। अदालत ने इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर के लिए निर्धारित की है।
इस बहस ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारत को मृत्युदंड के पारंपरिक तरीकों में सुधार कर मानवीय विकल्प अपनाना चाहिए। अदालत का यह रुख न केवल न्यायिक सुधार की दिशा में संकेत देता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि आधुनिक युग में सजा के तरीकों पर पुनर्विचार की जरूरत है।