सीजी भास्कर, 19 दिसंबर। भारतीय फिल्म जगत में पिछले 25 साल ऐसे बीते, मानो दो अलग-अलग दौर एक-दूसरे से टकराकर आगे निकल (Digital Film Buzz) गए हों। कभी अखबार, पोस्टर, टीवी इंटरव्यू और दीवारों पर चिपकते विज्ञापन प्रमोशन का चेहरा थे, और आज वही जगह स्मार्टफोन स्क्रीन ने ले ली है। फिल्मों के प्रचार का तरीका इतना तेजी से बदला कि पारंपरिक मॉडल अब इतिहास की किताबों में दर्ज होने लायक रह गया है।
साल 2000 से 2005 तक फिल्में दर्शकों के पास पहुंचती थीं—लेकिन धीरे-धीरे, तय कदमों के साथ। मार्केटिंग की दुनिया तब टीवी चैनलों, सिने मैगजीन और सड़क किनारे चमकते पोस्टरों पर निर्भर थी। दर्शक सिर्फ वही देखते थे, जो मेकर्स दिखाना (Digital Film Buzz) चाहते थे। संवाद एकतरफा था, सवाल कम थे और जवाब लगभग खत्म।
यूट्यूब के आगमन ने 2006-2007 में फिल्म मार्केटिंग की दिशा घुमा दी। डिजिटल स्पेस पहली बार हाथ में आया—लेकिन पूरी तरह नहीं। टीवी, अखबार और पब्लिसिटी इवेंट्स का दबदबा जारी रहा। इंटरनेट बस एक सहायक रास्ता था, मंज़िल नहीं।
2008 में एक मोड़ ऐसा आया, जिसने आगे का रास्ता साफ किया। फिल्म गजनी ने डिजिटल कैम्पेन के जरिए दर्शकों को गेम्स, वेबसाइट एक्टिविटीज़ और इंटरएक्टिव टास्क से जोड़ा। यह पहली बार था जब दर्शकों ने खुद कंटेंट को प्रमोट किया—बिना इसके एहसास के।
2009 से 2013 के बीच ऑनलाइन दुनिया तेज़ी से घरों में पहुंची। सोशल मीडिया ने दस्तक दी, और ट्रेलर यूट्यूब पर जारी होने लगे। फिल्में अब केवल देखी नहीं जाती (Digital Film Buzz) थीं—चर्चा का विषय बनती जा रही थीं। फिर आया स्मार्टफोन का दौर—2014 से 2015। अब हर राय, हर बहस, हर रिव्यू स्क्रीन पर।
लक्ष्य बदल चुके थे। 2016-2017 में फिल्म प्रमोशन ने मीम्स, छोटे वीडियो, स्टिल क्लिप्स और वायरल ह्यूमर के साथ नए आयाम तलाशे।
2018-2019 में ऑनलाइन चर्चा और विवादों ने प्रचार के मायने बदल दिए। कई फिल्मों ने सोशल मीडिया हाइप के जरिए दर्शकों को आकर्षित किया। अब न पोस्टर की जरूरत थी, न अखबार की सुर्खियों की—एक वायरल पोस्ट काफी थी।
2020 से 2025 तक प्रमोशनल बजट का बड़ा हिस्सा सीधे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पहुंच गया। लगभग हर फिल्म का ट्रेलर, पोस्टर, म्यूजिक, बीटीएस वीडियो और इंटरव्यू फोन स्क्रीन से होते हुए दर्शकों तक पहुंचने लगे।
आज हालात यह हैं कि दर्शक अब केवल रिसीवर नहीं—फिल्म मार्केटिंग का हिस्सा हैं। इंस्टाग्राम, ट्विटर और शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म्स पर फैन्स की पोस्ट, रिव्यू, रिएक्शन और आलोचना फिल्मों की दिशा तय कर रही है।
सितारे भी खुद को प्रमोशन की इस नई दुनिया में ढाल चुके हैं। सवाल-जवाब सेशन, लाइव चैट, बिहाइंड-द-सीन झलक और इंटरएक्टिव स्टोरीज़ ने दूरी को खत्म कर दिया है।
इन्फ्लुएंसर्स की भूमिका ने इस क्षेत्र को नई ऊंचाई दी है। फिल्म मेकर्स अब सीधे उस समूह तक पहुंचते हैं जो फिल्म देखने का फैसला करता है—यानी आम दर्शक।
फिल्मों की तकदीर बदल गई है। कभी पोस्टर से तय होती थी, आज पोस्ट से होती है। डिजिटल स्क्रीन ने प्रमोशन का लोकतंत्र लिख दिया है—खुला, तीखा और तुरंत असर दिखाने वाला।


