सीजी भास्कर, 20 जून 2025। चुनाव आयोग (Election Commission) ने चुनावी रिकॉर्ड को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। अब से मतगणना के 45 दिन बाद तक ही चुनाव से संबंधित वीडियो और फोटो डेटा को रखा जाएगा। यदि इस अवधि में किसी निर्वाचन क्षेत्र को लेकर कोई याचिका या शिकायत दर्ज नहीं होती, तो वह सारा रिकॉर्ड स्थायी रूप से नष्ट कर दिया जाएगा।
इस फैसले का मकसद सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर भ्रामक जानकारी और फेक नरेटिव के प्रसार को रोकना बताया गया है, लेकिन कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने इसे लोकतंत्र की पारदर्शिता पर हमला करार दिया है।
चुनाव आयोग ने जारी किए दिशा-निर्देश
30 मई 2025 को चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को यह निर्देश जारी किया कि चुनाव परिणाम आने के बाद 45 दिनों के भीतर, अगर उस क्षेत्र को लेकर कोई याचिका दर्ज नहीं की गई है, तो चुनाव से जुड़े सभी वीडियो, फोटोग्राफ्स और डिजिटल रिकॉर्ड हटा दिए जाएँ।
आयोग का मानना है कि वोटिंग, काउंटिंग और पोलिंग स्टेशनों के फुटेज का गलत इस्तेमाल बढ़ रहा है। इन रिकॉर्डिंग्स को तोड़-मरोड़ कर सोशल मीडिया पर भ्रामक संदेश फैलाए जा रहे हैं, जिससे मतदाताओं में संशय और असमंजस की स्थिति पैदा हो रही है।
पहले क्या था नियम?
पहले चुनावी दस्तावेज, खासकर CCTV फुटेज, वेबकास्टिंग और पोलिंग रिकॉर्डिंग्स को 3 महीने से लेकर 1 साल तक संरक्षित रखा जाता था। जरूरत पड़ने पर ये कोर्ट या चुनाव से जुड़े विवादों में बतौर सबूत काम आते थे।
अब आयोग का कहना है कि रिकॉर्डिंग्स केवल आंतरिक मॉनिटरिंग और पारदर्शिता के लिए होती हैं। चूंकि इनका कोई कानूनी दायित्व नहीं है, इसलिए इन्हें लंबे समय तक रखने की आवश्यकता नहीं है।
AI से खतरा: रिकॉर्डिंग में छेड़छाड़ की आशंका
आयोग के अनुसार, आज के डिजिटल युग में AI तकनीक का इस्तेमाल करके फुटेज से छेड़छाड़ की जा सकती है।
कई घटनाओं में देखा गया है कि कुछ राजनीतिक दल या असंबंधित व्यक्ति CCTV क्लिप्स या वेबकास्ट फुटेज को एडिट कर गलत अफवाहें फैलाते हैं, जिससे चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
इसी खतरे को रोकने के लिए डेटा को लंबे समय तक संरक्षित ना रखने का निर्णय लिया गया है।
कांग्रेस का आरोप: “यह लोकतंत्र पर हमला है”
इस फैसले पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया कांग्रेस पार्टी की तरफ से आई है। पार्टी प्रवक्ताओं ने इसे लोकतंत्र की निगरानी खत्म करने की साजिश बताया। उनका कहना है कि सरकार और आयोग चुनावी पारदर्शिता पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में महाराष्ट्र चुनाव में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए EC से पोलिंग बूथ की CCTV रिकॉर्डिंग की मांग की थी। अब नए नियमों के तहत, यदि कोई याचिका नहीं है, तो ऐसी रिकॉर्डिंग उपलब्ध ही नहीं रहेगी।
दिसंबर 2024 में भी हुए थे नियमों में बदलाव
इससे पहले 20 दिसंबर 2024 को केंद्र सरकार ने नियमों में बदलाव करते हुए चुनाव से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक डॉक्यूमेंट्स को सार्वजनिक करने पर रोक लगा दी थी। तब कहा गया था कि केवल उम्मीदवारों को ही ये रिकॉर्ड दिए जाएंगे, और बाकी किसी को इन्हें प्राप्त करने के लिए कोर्ट जाना होगा।
अब 2025 में आया यह नया आदेश उस दिशा में एक और कदम माना जा रहा है।