सीजी भास्कर 3 जून लोककला और काष्ठ शिल्प के क्षेत्र में देशभर में पहचान बना चुके पद्मश्री पंडीराम मंडावी का नई दिल्ली से सम्मान लेकर लौटने पर गढ़बेंगाल गांव में पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ भव्य स्वागत किया गया। उनकी इस उपलब्धि पर पूरे नारायणपुर और अबूझमाड़ क्षेत्र में उत्सव का माहौल है।
संबंधित खबरेंजैसे ही पंडीराम मंडावी गांव पहुंचे, ग्रामीणों ने मांदर, ढोल और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर आदिवासी नृत्य प्रस्तुत कर उनका ज़ोरदार स्वागत किया। पूरा गांव पारंपरिक वेशभूषा में सजा हुआ नजर आया और वातावरण सांस्कृतिक उत्सव में तब्दील हो गया। बड़ी संख्या में लोग मंडावी से मिलने और उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने के लिए उमड़ पड़े। यह सम्मान आदिवासी समाज की कला, संस्कृति और परंपरा को राष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
संस्कार, कला और पहचान की जीतपंडीराम मंडावी को मिले पद्मश्री सम्मान को न केवल उनका व्यक्तिगत सम्मान माना जा रहा है, बल्कि यह बस्तर और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत की भी जीत है। यह उपलब्धि उन सैकड़ों लोक कलाकारों और परंपरागत शिल्पकारों के लिए प्रेरणा है, जो आज भी अपनी कला को जीवित रखे हुए हैं।
परिवार और क्षेत्र में गर्व का माहौल गांव के लोगों के साथ-साथ परिजनों में भी गर्व और खुशी का माहौल है। उनके पुत्र बलदेव मंडावी ने मीडिया से बातचीत में कहा, ’’मैं अपने पिता को रोल मॉडल मानता हूँ और उनकी काष्ठ कला को आगे बढ़ाने के लिए संकल्पित हूँ। मैं क्षेत्र के युवाओं से अपील करता हूँ कि वे इस कला को सीखें और सहेजें।’’