हरियाणा की राजनीति में नया मोड़ आ गया है। Haryana Congress Internal Rift खुलकर सामने आ गया है, क्योंकि पार्टी हाईकमान ने ओबीसी नेता राव नरेंद्र सिंह को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। उनके नाम के ऐलान के साथ ही कांग्रेस खेमे में विरोध की आवाजें तेज़ हो गईं और कई नेताओं ने सीधे-सीधे फैसले पर सवाल खड़े कर दिए।
वरिष्ठ नेताओं की नाराज़गी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि प्रदेश की कमान किसी बेदाग और नई छवि वाले नेता को मिलनी चाहिए थी। पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि “हरियाणा कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिर रहा है और ऐसे में साफ-सुथरी छवि वाले व्यक्ति को जिम्मेदारी मिलनी चाहिए थी, लेकिन हुआ इसका उलट। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा है।”
यह बयान Haryana Congress Internal Rift को और गहरा करता दिख रहा है।
आलाकमान का भरोसा और राहुल गांधी की नज़दीकी
राव नरेंद्र को प्रदेशाध्यक्ष की कमान इसलिए मिली क्योंकि वे राहुल गांधी के करीबी नेताओं में गिने जाते हैं। Haryana Congress Internal Rift के बीच उनकी नियुक्ति कांग्रेस के अंदर शक्ति संतुलन का भी संकेत है। राव तीन बार विधायक और एक बार कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। वे अहीरवाल क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं, जिसमें रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और गुरुग्राम जैसे इलाके शामिल हैं।
अनुसूचित जाति नेतृत्व से ओबीसी नेतृत्व की ओर बदलाव
पार्टी ने इस बार अपने पुराने पैटर्न को तोड़ा है। अब तक हरियाणा कांग्रेस का नेतृत्व अनुसूचित जाति समुदाय के नेताओं के हाथ में रहा था। लेकिन राव की नियुक्ति ने इस परंपरा में बदलाव ला दिया है। यह फैसला न केवल Haryana Congress Internal Rift को उजागर करता है, बल्कि ओबीसी मतदाताओं पर पार्टी के नए फोकस को भी दिखाता है।
दक्षिणी हरियाणा में कांग्रेस की चुनौतियाँ
दक्षिणी हरियाणा में कांग्रेस का प्रदर्शन पिछले चुनावों में कमजोर रहा। 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस क्षेत्र की 11 में से 10 सीटें जीतीं, जबकि 2014 में सभी सीटें भाजपा के खाते में गई थीं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राव नरेंद्र इस इलाके में पार्टी को पुनर्जीवित कर पाएंगे या Haryana Congress Internal Rift का असर चुनावी तैयारी पर भारी पड़ेगा।
हुड्डा की वापसी और संतुलन साधने की कोशिश
पार्टी ने लगभग 11 महीने बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस विधायक दल का नेता बनाकर यह संकेत दिया कि संतुलन साधने की कोशिश की जा रही है। मगर कार्यकर्ताओं और नेताओं का असंतोष दिखाता है कि Haryana Congress Internal Rift को संभालना आसान नहीं होगा।
आगे क्या होगा?
राव नरेंद्र की नियुक्ति को लेकर उठे सवालों का जवाब समय ही देगा। फिलहाल कांग्रेस नेतृत्व डैमेज कंट्रोल की रणनीति बनाने में जुटा है। देखना होगा कि वे पार्टी के भीतर बढ़ते मतभेदों को कैसे संभालते हैं और चुनाव से पहले कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने में कितना सफल होते हैं।