नवजात के सीने पर एचआईवी की तख्ती लगाने के मामले में हाई कोर्ट की सख्त फटकार
अमानवीय और असंवेदनशील कृत्य बताकर अदालत ने लिया स्वतः संज्ञान
चार हफ्ते के भीतर मुआवजा भुगतान का आदेश
सीजी भास्कर, 16 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने रायपुर के आंबेडकर अस्पताल में हुई शर्मनाक घटना को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई है। अस्पताल में एक नवजात शिशु के सीने पर ‘इसकी मां एचआईवी पॉजिटिव है’ लिखी तख्ती लगाने की घटना को अदालत ने अमानवीय और असंवेदनशील करार दिया। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि नवजात के माता-पिता को चार सप्ताह के भीतर दो लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने मंगलवार को जारी किया। अदालत ने इस (HIV Awareness High Court Case) को स्वतः संज्ञान में लेकर सुनवाई की थी।
यह है मामला
10 अक्टूबर 2025 को रायपुर के आंबेडकर अस्पताल में एक नवजात के सीने पर तख्ती लगाई गई थी, जिस पर लिखा था— “इसकी मां एचआईवी पॉजिटिव है”। इस अमानवीय दृश्य को देखकर पिता और स्वजन फफक पड़े थे। खबर सामने आते ही हाई कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए स्वतः संज्ञान लिया और राज्य के मुख्य सचिव को जांच कर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
मुख्य सचिव ने पेश की रिपोर्ट
मुख्य सचिव ने 14 अक्टूबर को अदालत में व्यक्तिगत हलफनामा पेश किया। इसमें बताया गया कि चिकित्सा शिक्षा निदेशक की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की गई थी, जिसने विस्तृत जांच रिपोर्ट सौंपी। राज्य सरकार ने कहा कि अब एचआईवी/एड्स (प्रीवेंशन एंड कंट्रोल) एक्ट के प्रावधानों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित किया जा रहा है। सभी सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और स्वास्थ्य संस्थानों को गोपनीयता बनाए रखने और भेदभाव रोकने के लिए निर्देश दिए गए हैं।
इसके अलावा, स्वास्थ्यकर्मियों को संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और जनजागरूकता अभियान नियमित रूप से आयोजित करने के आदेश दिए गए हैं। सरकार ने अदालत को आश्वस्त किया कि भविष्य में ऐसी (HIV Awareness High Court Case) घटना दोबारा न हो, इसके लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।
कोर्ट ने कही सख्त बातें
हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी अस्पताल द्वारा मरीज की पहचान या बीमारी सार्वजनिक करना न केवल निजता का उल्लंघन है, बल्कि यह उसके सम्मान और गरिमा के अधिकार का हनन भी है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है।
अदालत ने कहा कि एचआईवी संक्रमित मरीजों के साथ भेदभाव समाज के नैतिक मूल्यों के खिलाफ है। किसी व्यक्ति की बीमारी उसकी पहचान नहीं हो सकती। इस तरह की घटनाएं समाज में जागरूकता के बजाय डर और कलंक को जन्म देती हैं।