India Gate Protest Case उस घटना से जुड़ा है जो 23 नवंबर को दिल्ली के इंडिया गेट पर वायु प्रदूषण के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान अचानक एक अलग दिशा पकड़ लेती है। आरोप है कि भीड़ के बीच कुछ लोगों ने हिड़मा के समर्थन में नारे लगाए और माहौल तनावपूर्ण हो गया। पुलिस ने मौके से 20 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया, पूछताछ के बाद कुछ को छोड़ दिया, जबकि बाकी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
10 में से 9 को मिली राहत, लेकिन एक महिला की जमानत अटकी
इस India Gate Protest Case के तहत दायर जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अदालत ने 10 में से 9 नामों पर राहत देते हुए उन्हें जमानत मंजूर कर दी। अदालत ने माना कि अधिकांश आरोपियों के खिलाफ ऐसा कोई प्रमाण सामने नहीं आया जो उन्हें किसी कट्टरपंथी या नक्सल समर्थक समूह से जोड़ सके।
सीसीटीवी फुटेज, मोबाइल वीडियो और से जुटाए दृश्य प्रमाणों में उन 9 लोगों की भूमिका नारेबाज़ी या भीड़ में मौजूद रहने से आगे नहीं दिखती थी। अदालत ने यही आधार बनाते हुए कहा कि “सिर्फ मौजूद रहने से हिरासत का औचित्य नहीं बनता।”
इलाकिया के मामले में अदालत का अलग रुख क्यों रहा?
लेकिन इस पूरे India Gate Protest Case में एक नाम ऐसा था जिसे अदालत ने अलग नज़रिए से देखा—इलाकिया।
अदालत के अनुसार, महिला के खिलाफ मौजूद प्रारंभिक इनपुट बाकी आरोपियों की तुलना में ज्यादा गंभीर थे। कोर्ट में रखे गए तथ्यों के मुताबिक, महिला ने हिड़मा के समर्थन में स्पष्ट नारे लगाए थे और उसके बारे में यह भी जानकारी पुलिस ने दी कि वह प्रतिबंधित Radical Students Union से जुड़ी बताई जाती है।
अदालत को यह भी संदेह रहा कि प्रदर्शन के दौरान भीड़ की दिशा बदलने में उसकी भूमिका हो सकती है। अदालत ने यह संभावना जताई कि उसे रिहा करने पर वह जांच में दखल दे सकती है या अपने जुड़े लोगों को पहले ही सावधान कर सकती है।
हिड़मा पोस्टर, नारे और पुलिस के साथ टकराव का दावा
मामले की जांच कर रही टीम का कहना है कि प्रदर्शन में कुछ लोगों ने “हिड़मा को जल, जंगल, जमीन का रक्षक” बताने वाले पोस्टर उठाए थे। इसी दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच नोकझोंक हुई और हालात बिगड़ते चले गए।
पुलिस के दावे के अनुसार, तनाव इतना बढ़ा कि मिर्च स्प्रे तक इस्तेमाल करना पड़ा, जिससे कुछ पुलिसकर्मी घायल हुए। इस पूरे घटनाक्रम के बाद 23 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था और धीरे–धीरे कई को जमानत भी मिल गई है।
बचाव पक्ष की दलीलें—“सबूत नहीं, फिर भी जमानत नहीं!”
इलाकिया की तरफ से पेश वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि किसी एक भी आरोपी को नक्सली संगठन से जोड़ने के लिए ठोस सबूत नहीं हैं। उनका कहना था कि जिन धाराओं में गिरफ्तारियां हुई हैं, वे सामान्य परिस्थितियों में जमानत योग्य हैं और अधिकतम सजा सात वर्ष से कम की श्रेणी में आती है।
इसके बावजूद अदालत ने इलाकिया का मामला बाकी से अलग मानते हुए कहा कि उसकी भूमिका, नारे और संभावित संगठनात्मक संबंध (organizational link) देखते हुए अभी जमानत देना उचित नहीं है।
आगे क्या—जांच का दायरा और बड़ा होने की तैयारी
अदालत का रुख इस ओर भी इशारा करता है कि जांच एजेंसियां इस पूरी घटना को सिर्फ एक पर्यावरण प्रदर्शन की गड़बड़ी नहीं मान रहीं, बल्कि यह देखने की कोशिश कर रही हैं कि कहीं इसके पीछे कुछ संगठित समूह सक्रिय तो नहीं थे।
इलाकिया की जमानत याचिका अब उच्च अदालत में चुनौती दी जा सकती है, वहीं पुलिस इस घटना के दौरान मौजूद और लोगों की पहचान भी जारी रखे हुए है।


