सीजी भास्कर, 21 नवंबर। ISIS Suspected Minors मामले में फरीदनगर (भिलाई) के चार नाबालिगों को आतंकवाद विरोधी दस्ता दो दिन तक पूछताछ के बाद परिजनों को सौंप दिया गया। ये चारों बच्चे उन दो किशोरों के संपर्क में पाए गए थे, जिन्हें पहले ही आतंकी मॉड्यूल से जुड़े होने के शक में पकड़ा गया था। पूछताछ बुधवार सुबह शुरू हुई थी और गुरुवार देर शाम जाकर खत्म हुई।
पहले गिरे नेटवर्क की कड़ियों से जुड़े थे चारों किशोर ISIS Suspected Minors
जांच में सामने आया कि ये नाबालिग पहले पकड़े गए दो किशोरों के WhatsApp व अन्य चैट-प्लेटफॉर्म पर सक्रिय थे। ATS अधिकारियों ने पुष्टि की है कि चारों से पूछताछ की गई और फिर उन्हें उनके माता-पिता के सुपुर्द किया गया। टीम ने पाया कि बातचीत और ऑनलाइन इंटरैक्शन में कई संदिग्ध संकेत मौजूद थे, हालांकि नाबालिग होने की वजह से प्रक्रिया बेहद संवेदनशील ढंग से की गई।
ट्रेनिंग फेज का खुलासा—100 से अधिक लड़कों का ऑनलाइन ग्रुप
जांच से पता चला कि पहले पकड़े गए दो किशोर ISIS Training Phase के आखिरी स्टेप में थे। मोबाइल फॉरेंसिक में कट्टरपंथी कंटेंट, कोड-लैंग्वेज, हटाए गए चैट, छुपाए गए कॉल लॉग और संदिग्ध ग्रुप लिंक मिले। बताया जा रहा है कि यह ऑनलाइन ग्रुप 100 से अधिक लड़कों तक फैल चुका था। अब ATS उन बाकी लड़कों की पहचान में जुटी है, जो अभी भी इस नेटवर्क के संपर्क में हो सकते हैं।
ऑनलाइन गेम्स के नाम पर हिंसक ‘टास्क’, डार्क वेब से कनेक्शन
जांच से ये भी सामने आया कि नाबालिगों को हिंसक ऑनलाइन गेम्स भेजे जाते थे, जो दरअसल मानसिक रूप से ‘टास्क-आधारित हमलों’ की फर्जी ट्रेनिंग थी। साथ ही उन्हें VPN, डार्क वेब और एन्क्रिप्टेड साइट्स का इस्तेमाल करना भी सिखाया गया। कई चैट नियमित रूप से डिलीट की जाती थीं और बातचीत fake-ID से होती थी।
मॉनिटरिंग दो साल से जारी थी—संकेत मजबूत होते ही कार्रवाई
अधिकारियों ने पुष्टि की है कि इन नाबालिगों पर दो वर्ष पहले ही संदेह हुआ था। इसके बाद उनकी डिजिटल गतिविधियों पर साइलेंट सर्विलांस जारी था। जैसे ही प्रमाण पर्याप्त हुए, कार्रवाई की गई। दिलचस्प बात यह है कि इन गतिविधियों की भनक परिवारों को बिल्कुल नहीं लगी—बच्चों के मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट में पढ़ाई के नाम पर ही ये सब चल रहा था।
टारगेट था युवा—सोशल प्लेटफॉर्म्स पर ‘धीमी कट्टरता’ का खेल : ISIS Suspected Minors
ATS के अनुसार, यह मॉड्यूल खासतौर पर किशोरों को टारगेट कर रहा था। सोशल मीडिया पर Slow Radicalization के पैटर्न की झलक जांच में दिखती है। परिवार अनजाने में बच्चों को डिवाइस उपलब्ध करा रहे थे और वही डिवाइस आतंकियों के नेटवर्क से जोड़ने का माध्यम बन गए।
