मध्य प्रदेश का जगदीशपुर किला, (Jagdishpur Fort History) एक ऐसा स्थापत्य है, जो अपनी परतों में कई युगों की कहानियाँ लिए खड़ा है। 15वीं सदी में गोंड साम्राज्य के 52 गढ़ों में शामिल यह किला अपने विशाल परिसर, मजबूत चौहद्दी और ऊँचे बुर्जों के साथ अब भी उस दौर के गौरव को महसूस कराता है। किले की दीवारों पर उकेरी गई नक़्काशी में गोंड कला की झलक अब भी साफ दिखाई देती है।
परमार काल से संग्रामशाह तक, फिर अकबर के राज में बदलाव
ऐतिहासिक अभिलेखों में मिलता है कि यह इलाका परमार काल के बाद गोंड सत्ता के अधीन था। गोंड राजा संग्रामशाह द्वारा स्थापित कई किलों में से यह प्रमुख किला मुगल शासन के दौरान नया मोड़ लेता है। रानी दुर्गावती के पराजित होने के बाद यह परिसर मुगल नियंत्रण में आया और आगे चलकर देवड़ा राजपूतों का महत्वपूर्ण ठिकाना बना। इसी कालखंड में इसे ‘जगदीशपुर’ नाम मिला—(Name Transition History) यही नाम आज फिर अपना स्थान वापस पा चुका है।
दोस्त मोहम्मद खान का दौर और ‘इस्लामनगर’ नामकरण
18वीं शताब्दी में दोस्त मोहम्मद खान ने इस किले पर नियंत्रण स्थापित किया और इसका नाम बदलकर ‘इस्लामनगर’ कर दिया। हालांकि, समय बीतने के साथ स्थानीय पहचान फिर उभरकर सामने आई और यह क्षेत्र दोबारा अपने मूल नाम—जगदीशपुर—से ही प्रसिद्ध हो गया।
प्राचीर, बुर्ज और गोंड स्थापत्य की मजबूत छाप
किले की बाहरी प्राचीर आज भी उतनी ही सुदृढ़ महसूस होती है, जितनी कभी अपने चरम पर रही होगी। उभरे हुए बुर्ज, चौड़े रास्ते और तीन बड़े द्वार उस समय की सुरक्षा व्यवस्था की झलक देते हैं। अंदर पश्चिम दिशा में स्थित गोंड महल और पूर्व दिशा का शाही परिसर, दोनों अपने समय की अलग पहचान और वास्तुशैली प्रस्तुत करते हैं। शाही परिसर के लिए अलग बनाया गया सुरक्षा घेरा इस स्थान की रणनीतिक महत्ता को दर्शाता है।
गोंड महल—किले का सबसे प्राचीन हिस्सा
गोंड महल, किले का सबसे पुराना भाग माना जाता है, जिसकी स्थापना 15–16वीं शताब्दी में हुई थी। तीन मंजिला इस महल में बड़ा आंगन, मेहराबदार दालान, दीवाने-आम, स्नानगृह, फव्वारे और अश्वशाला जैसे हिस्से शामिल हैं। इसकी झरोखों और मेहराबों की बारीक नक्काशी, (Gond Architecture Art) आज भी गोंड कला की सुंदरता को जीवित रखती है।
रानी महल—गोंड और मुगल कला का सांस्कृतिक संगम
रानी महल किले का वह हिस्सा है, जहाँ गोंड और मुगल स्थापत्य शैली का अनोखा मेल देखने को मिलता है। मूल रूप से 16वीं सदी में निर्मित यह महल 17वीं सदी में मुगल प्रभाव वाली बहुकोणीय मेहराबों से सजाया गया। कभी यह देवड़ा राजपूतों और बाद में दोस्त मोहम्मद खान का निवास भी रहा, इसलिए यहाँ दोनों संस्कृतियों की झलक मिलना स्वाभाविक है।
चमन महल—चारबाग शैली का खूबसूरत नमूना
किले के शाही परिसर का सबसे आकर्षक हिस्सा चमन महल है। इसकी वास्तुशैली में राजपूत और मुगल दोनों का असर साफ दिखता है—ऊँचे गुंबद, अर्ध मेहराबें, हमाम और सुंदर उद्यान। इसके बागों में चारबाग की शैली स्पष्ट रूप से महसूस होती है, जो कश्मीर के शालीमार और निशात बागों की छवि को याद दिलाती है।
संरक्षण कार्यों से लौट रहा किले का वैभव
1977 में राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहण के बाद किले का संरक्षण लगातार जारी है। हाल ही में रानी महल और चमन महल का जीर्णोद्धार पूरा होने के बाद अब अगले चरण में मुख्य द्वार, परकोटा और बुर्जों को उनके मूल स्वरूप में लौटाने की योजना तैयार है। यह कार्य भविष्य में (Cultural Heritage Revival) को नया रूप देगा।
पहली बार आयोजित होगा ‘हृदय दृश्यम’ संगीत समारोह
इस बार किले में ‘हृदय दृश्यम’ संगीत कार्यक्रम का आयोजन होने जा रहा है, जिसके साथ ही हस्तशिल्प और व्यंजन मेला भी लगेगा। इस आयोजन से उम्मीद है कि यह धरोहर न सिर्फ इतिहास प्रेमियों, बल्कि पर्यटकों के लिए भी नया आकर्षण केंद्र बनेगी।


