सीजी भास्कर, 23 सितंबर। निजी हित के लिए अवैध निर्माण की आड़ में अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वालों पर तीखी टिप्पणी करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि ब्लैकमेलर अवैध निर्माण करने वाले व्यक्तियों से जबरन वसूली के लिए गंभीर JUDICIAL POWER का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
अदालत ने कहा कि अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन अदालत ऐसे किसी बेईमान व्यक्ति की मदद नहीं करेगी, जो ऐसे अवैध निर्माण करने वाले व्यक्तियों से जबरन वसूली करे। याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा कि यह अदालत पहले ही अनधिकृत निर्माणों के विरुद्ध धन उगाही के उद्देश्य से याचिका दायर करने वाले कई याचिकाकर्ताओं के आचरण की निंदा कर चुकी है।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता तौकीर आलम ने गैर-सरकारी संगठन मानव समाज सुधार सुरक्षा संस्था के नाम पर याचिकाएं दायर करने का तरीका अपनाया है। अनधिकृत निर्माण के मामलों में बेईमान वादियों द्वारा अपनाई जा रही यह प्रथा एक चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाती है। याचिका में शाहीन बाग इलाके में एक संपत्ति में किए गए अवैध निर्माण को ध्वस्त करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी।
अदालत ने कहा कि एमसीडी और दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई की है और अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त कर दिया गया है। वहीं, याचिकाकर्ता का आवास संबंधित संपत्ति से लगभग ढाई किलोमीटर दूर है। इन तथ्यों को देखते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के किसी भी कानूनी या मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है।
