कूनो नेशनल पार्क के लिए बने Kuno Cheetah Monitoring System पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। तीन दिनों के भीतर दो चीता शावकों का मौत के अलग-अलग कारणों से रिकॉर्ड होना और तीसरे का अब तक न मिलना, इस पूरे प्रोजेक्ट की कमियों पर गहरा प्रकाश डालता है।
वन विभाग की टीमें लगातार तलाशी में लगी हैं, लेकिन अब तक तीसरे शावक की लोकेशन का कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिल पाया है।
खुले जंगल में ‘खतरे’ ने लिया पहला शावक
गामिनी नाम की मादा चीता को खुले जंगल में छोड़ा गया था। उसके तीन शावकों में से पहला शावक पांच दिसंबर को किसी हिंसक जानवर के हमले में मारा गया।
वन विभाग के भीतर इस घटना ने यह सवाल खड़ा किया कि Kuno Cheetah Monitoring System के रहते हुए किसी शिकारी का इतनी आसानी से शावक तक पहुंचना कैसे संभव हुआ।
सड़क पार करते वक्त मौत, दूसरा शावक वाहन की चपेट में
दो दिन बाद दूसरी घटना और भी गंभीर थी—एक शावक सड़क पार करते समय वाहन की टक्कर से मारा गया। यह घटना कूनो के बाहरी एरिया में घटित हुई और इससे पता चलता है कि पार्क की सीमा के आसपास सुरक्षा प्रबंधन में बेहद गंभीर चूक मौजूद है।
हैरानी की बात यह है कि प्रोजेक्ट के तहत करोड़ों की लागत के बावजूद सड़क सुरक्षा को लेकर कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई।
तीसरा शावक अब भी गायब — खोज में जुटी टीमें
तीसरा शावक लापता है और वनकर्मी लगातार खोज अभियान चला रहे हैं।
स्थानीय टेरेन घना होने के कारण सर्च में चुनौतियाँ कई गुना बढ़ जाती हैं। विभाग का कहना है कि वह हर संभव तरीका अपनाकर लापता शावक की तलाश कर रहा है।
करोड़ों की लागत, फिर भी निगरानी तंत्र कमजोर क्यों?
अब तक इस प्रोजेक्ट पर 115 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं। दावा किया जाता है कि प्रत्येक चीते की निगरानी के लिए पाँच वनकर्मी तैनात रहते हैं, लेकिन घटनाओं की श्रृंखला यह दर्शाती है कि Kuno Cheetah Monitoring System सिर्फ कागजों में मजबूत दिखता है, जमीन पर नहीं।
तेंदुओं के खतरे को हल्के में लिया गया
कूनो और आसपास के इलाकों में 100 से अधिक तेंदुए मौजूद हैं।
तेंदुओं और चीतों के मूवमेंट का कई जगह ओवरलैप होना स्वाभाविक खतरा पैदा करता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि चीतों की ताकत और आक्रामकता तेंदुओं से कम होती है, इसलिए उन्हें अलग जोन में रखना चाहिए था, लेकिन इस दिशा में पर्याप्त प्रयास नहीं हुए।
घास के मैदान और विस्थापन — जिन पर ध्यान ही नहीं दिया गया
चीतों को जंगल में छोड़ने से पहले घास के मैदानों का विकास, उनके अनुकूल वातावरण तैयार करना और ग्रामीणों के विस्थापन जैसे कदम बेहद जरूरी थे।
विशेषज्ञ वर्षों से इस पर ज़ोर देते रहे हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इन सुझावों पर अपेक्षित काम नहीं दिखता।
वन विभाग का आश्वासन, लेकिन सवाल जस के तस
विभाग का कहना है कि सड़क हादसे में शावक की मौत पहली बार हुई है और भविष्य में सुरक्षा उपायों को और मजबूत किया जाएगा।
हालांकि, लगातार होने वाली मौतों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था को नई दिशा और नए सिस्टम की जरूरत है।


