Lyari Karachi Crime History : फिल्म के बाद बढ़ी चर्चा: ल्यारी का अंधेरा फिर सामने आया
धुरंधर फिल्म के रिलीज़ होते ही कराची का पुराना इलाका ‘ल्यारी’ एक बार फिर सुर्खियों में आ गया। रणवीर सिंह, संजय दत्त और अक्षय खन्ना की कहानी में दिखाए गए गैंगवार ने उस दौर की यादें ताज़ा कर दीं, जब यह इलाका कारीगरों और मजदूरों की बस्ती से निकलकर अपराधियों का सुरक्षित ठिकाना बन गया था। कई दर्शकों के लिए यह जगह नई हो सकती है, लेकिन इतिहास इसे कराची की रीढ़ मानता है, जहां कभी जीवन की रफ़्तार शांत और साधारण हुआ करती थी।
कराची का सबसे पुराना इलाका: क्यों कहा जाता था ‘कराची की मां’?
ल्यारी को कराची का सबसे पुराना और बसा-बसाया क्षेत्र माना जाता है। स्थानीय लोग इसे ‘कराची की मां’ कहकर बुलाते थे, क्योंकि कराची का शुरुआती विकास इसी धरातल पर हुआ था। ‘ल्यारी’ नाम सिंधी शब्द ‘ल्यार’ से निकला है, जिसका मतलब नदी किनारे उगने वाला पेड़ है। अरब सागर के पास बसे मछुआरे और बलूच खानाबदोश यहां के पहले निवासी बने, जिनके कारण यह इलाका धीरे-धीरे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध होता गया।
1725 से 1795: सिंधी बनियों और बलूच प्रवासियों ने बसाई नींव
साल 1725 में सिंधी बनियों के आने से यहां की बसावट तेज़ होने लगी। 1729 में कराची की औपचारिक स्थापना हुई और 1770 से 1795 के बीच बलूच प्रवासियों की संख्या तेजी से बढ़ी। ब्रिटिश शासनकाल तक आते-आते यहां की आबादी हज़ारों में पहुंच गई, और 1886 तक यह संख्या 24 हजार से ऊपर दर्ज की गई। इस दौरान व्यापारियों, कारीगरों और प्रवासी मजदूरों की वजह से इलाके का सामाजिक ढांचा काफी विकसित हो चुका था।
वर्किंग-क्लास एरिया: मजदूरों की बसाहट कैसे बढ़ी?
क्योंकि यह इलाका नदी के उस पार था, इसलिए अंग्रेजों के लिए इसकी प्राथमिकता कम रही। उद्योग और बंदरगाह के नजदीक होने के कारण मजदूर, छोटे व्यापारी और कारीगर यहां रहने लगे। समय के साथ यह कराची का पहला ‘वर्किंग-क्लास’ एरिया बन गया, जहां घनी आबादी, कच्चे घर और बेतरतीब विकास इसकी पहचान बन गए। यहां का आम जीवन साधारण था, लेकिन संघर्ष भरा।
उपेक्षा और बढ़ती आबादी: विभाजन के बाद हालात कैसे बिगड़े?
1941 में यहां की आबादी 81 हजार पार कर गई थी। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद भी इस इलाके पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। 1956 तक यहां की जनसंख्या साढ़े तीन लाख के आसपास पहुंच चुकी थी। सिंधी, बलूच, पंजाबी, उर्दूभाषी और पश्तून जैसे समुदायों के मिश्रण के बावजूद विकास की कमी और बेरोज़गारी ने समस्याओं को जन्म दिया, जिसने आगे चलकर अपराध की जमीन तैयार की।
कराची की पहचान बनाने वाला इलाका कैसे भटका रास्ते से?
कभी यही क्षेत्र कराची की सामाजिक और खेल प्रतिभा का केंद्र माना जाता था। फुटबॉल और बॉक्सिंग में यहां के युवाओं ने अपनी पहचान बनाई। कामगार वर्ग ने बंदरगाह और स्थानीय उद्योगों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लेकिन 1960 के दशक में नए तरह का नेटवर्क पनपा—ड्रग सप्लाई, अवैध वसूली और टैंकर माफिया।
गैंगवार का दौर: कैसे बना ‘नो-गो ज़ोन’?
1960 के दशक में उभरे ड्रग गैंगों ने क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाया। 1990 के दशक तक आते-आते कई गिरोह यहां पैर जमा चुके थे। रिपोर्ट्स के अनुसार, कुछ समूहों को राजनीतिक संरक्षण भी मिला। परिणामस्वरूप, रंगदारी, हथियारों का धंधा और गैंगवार ने स्थिति को भयावह बना दिया। 2000 के दशक में हिंसा चरम पर पहुंच गई और ल्यारी कई सालों तक ‘नो-गो ज़ोन’ कहकर पहचाना गया।
सुरक्षा अभियान और आज की स्थिति
सरकार ने अलग-अलग समय पर कई अभियान चलाए, जिनके बाद 2016–17 तक हालात में कुछ सुधार आया। 2023 की जनगणना के अनुसार, आज ल्यारी की आबादी लगभग 10 लाख है। सांस्कृतिक विविधता, खेल इतिहास और पुरानी बसाहट के बावजूद यह इलाका लंबे समय तक अपराध की छाया में जूझता रहा। धुरंधर ने उसी अतीत को फिर से उजागर किया है, जो कभी मजदूरों की बस्ती में डर की दास्तान बन चुका था।


