सीजी भास्कर, 14 अक्टूबर। माओवाद विरोधी अभियानों में सुरक्षा बलों को एक बड़ी सफलता मिली है। भाकपा (माओवादी) के शीर्ष पोलित ब्यूरो सदस्यों में शामिल डेढ़ करोड़ के इनामी माओवादी कमांडर भूपति उर्फ अभय उर्फ सोनू ने मंगलवार को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में समर्पण कर दिया। सूत्रों के अनुसार, भूपति के साथ संगठन के करीब 60 अन्य सदस्यों ने भी हथियार डाले हैं, हालांकि इस बड़े सामूहिक (Naxal Surrender) की आधिकारिक पुष्टि अभी बाकी है।
67 वर्षीय भूपति का आत्मसमर्पण भारत में कई दशकों से सक्रिय सबसे खतरनाक माओवादी कैडरों में से एक के मुख्यधारा में लौटने की मिसाल है। तेलंगाना के पेद्दापल्ली जिले के निवासी और बी.कॉम डिग्रीधारी भूपति माओवादी आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहा है। वह न केवल केंद्रीय समिति का सदस्य था, बल्कि माओवादियों की केंद्रीय सैन्य आयोग में भी अहम भूमिका निभाता था। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, भूपति का भाई किशनजी (जो 2011 में मुठभेड़ में मारा गया) भी कुख्यात माओवादी था, जबकि उसकी पत्नी तारक्का और भाभी सुजाता पहले ही समर्पण कर चुकी हैं।
सुरक्षा और पुलिस सूत्रों का कहना है कि यह आत्मसमर्पण माओवादी संगठन की रीढ़ तोड़ने वाला साबित हो सकता है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब कुछ सप्ताह पहले ही संगठन के आधिकारिक लेटरहेड पर भूपति (प्रवक्ता अभय के नाम से) ने हथियार छोड़ने और सरकार से शांति वार्ता शुरू करने की इच्छा जताई थी। यह पत्र माओवादी संगठन के भीतर बढ़ती टूट और निराशा का संकेत माना गया था। बताया जा रहा है कि (Naxal Surrender) के मुद्दे पर संगठन में गहरे मतभेद पनप रहे थे।
भूपति और उसके साथियों पर सड़क निर्माण में लगे वाहनों को जलाने, पुलिस पर हमला करने और बारूदी विस्फोट करने जैसे कई जघन्य अपराधों में शामिल होने का आरोप है। कुछ ही दिन पहले दंतेवाड़ा जिले में ‘लोन वर्राटू’ अभियान से प्रभावित होकर 71 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया था, जिनमें 21 महिलाएं और 50 पुरुष शामिल थे। इनमें से 30 माओवादियों पर कुल 64 लाख रुपये का इनाम था। सरेंडर करने वालों में डिवीजन और एरिया कमेटी के सदस्य भी थे, जो अतीत में कई बड़ी मुठभेड़ों में शामिल रहे हैं।
अधिकारियों का कहना है कि यह आत्मसमर्पण केंद्र और राज्य सरकारों की आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीतियों की सफलता को दर्शाता है। यह कदम अन्य भटके हुए माओवादियों को भी मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित कर सकता है। आत्मसमर्पण करने वाले सभी माओवादियों को राज्य सरकार की पुनर्वास योजना के तहत वित्तीय सहायता और सम्मानजनक जीवन जीने के अवसर मिलेंगे।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने कहा कि यह (Naxal Surrender) माओवाद के खिलाफ चल रहे व्यापक अभियानों में एक मील का पत्थर है। पिछले कुछ महीनों में सैकड़ों माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है, जिनमें से अधिकांश छत्तीसगढ़ और आसपास के माओवादी प्रभावित राज्यों से जुड़े हैं। भूपति जैसे शीर्ष नेतृत्व का आत्मसमर्पण यह दिखाता है कि सुरक्षा बलों के लगातार दबाव और स्थानीय जनता के समर्थन खोने से माओवादी संगठनों की नींव कमजोर हो रही है। इस घटना से माओवाद प्रभावित इलाकों में शांति और विकास की उम्मीदें और भी मजबूत हुई हैं।