सीजी भास्कर, 19 अगस्त |
एक ओर सरकार और प्रशासन “जनसेवा” और “सुविधाओं” की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, वहीं दूसरी ओर एक मजदूर पिता को अपनी मासूम बच्ची की लाश लेकर बस से सफर करना पड़ा।
- खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) का रहने वाला गौतम डोंगरे अपनी पत्नी और 2 साल की बच्ची के साथ हैदराबाद मजदूरी करने गया था।
- लौटते समय रास्ते में अचानक बच्ची की तबीयत बिगड़ी और उसकी मौत हो गई।
- राजनांदगांव रेलवे स्टेशन पहुँचने पर उन्होंने मुक्तांजलि शव वाहन सेवा से मदद मांगी।
प्रबंधन का जवाब
शव वाहन सेवा ने साफ कह दिया – “अगर मौत सरकारी अस्पताल में हुई होती, तब वाहन की सुविधा मिलती।”
मतलब, सड़क पर, सफर में, या किसी और हालात में मरने वाले को यह सेवा नहीं मिलेगी।
परिवार की मजबूरी
- पिता मासूम बेटी की लाश गोद में लेकर खैरागढ़ बस स्टैंड पहुँचे।
- वहां भी वही जवाब मिला।
- अंततः समाजसेवी हरजीत सिंह ने इंसानियत दिखाते हुए अपनी गाड़ी से परिवार को घर पहुँचाया और अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था करवाई।
- गौतम और उनकी पत्नी कृति ने लव मैरिज की थी। समाज ने उन्हें पहले ही बहिष्कृत कर रखा है। इस मुश्किल वक्त में समाज ने तो मदद नहीं की, लेकिन एक अजनबी ने इंसानियत निभाई।