सीजी भास्कर, 2 अगस्त |
रायपुर। छत्तीसगढ़ में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस वसूली पर अब लगाम लग सकती है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के साल 2020 में बनाए गए “अशासकीय विद्यालय शुल्क विनियमन अधिनियम” को पूरी तरह संवैधानिक करार दिया है। साथ ही, निजी स्कूलों की संस्था द्वारा दाखिल की गई याचिका को खारिज कर दिया गया है। यह फैसला राज्य के लाखों अभिभावकों और छात्रों के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है।
हाईकोर्ट का साफ संदेश: फीस तय करने का अधिकार राज्य सरकार के पास
मुख्य न्यायाधीश संजय के अग्रवाल और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि संविधान के तहत राज्य सरकार को शिक्षा संबंधी नीतियों पर नियंत्रण का अधिकार प्राप्त है। शिक्षा समवर्ती सूची में आती है, इसलिए राज्य सरकार फीस विनियमन के लिए कानून बना सकती है।
याचिका में क्या कहा गया था?
प्राइवेट स्कूलों के एसोसिएशन ने कोर्ट में दलील दी थी कि यह अधिनियम उनके स्वायत्त अधिकारों में हस्तक्षेप करता है। उनका कहना था कि फीस तय करने का अधिकार केवल स्कूल प्रबंधन के पास होना चाहिए। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) और 19(1)(g) (व्यवसाय की स्वतंत्रता) का हवाला देते हुए कानून को असंवैधानिक बताया।
कोर्ट ने तर्कों को नकारा, कहा- संघ नहीं ले सकता नागरिक अधिकारों का हवाला
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता कोई व्यक्तिगत नागरिक नहीं बल्कि एक संगठन (संघ) है, और ऐसे में अनुच्छेद 19 के तहत उन्हें संवैधानिक अधिकारों का हवाला देने का कोई आधार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह कानून पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है और इससे छात्रों व अभिभावकों को सीधा लाभ मिलेगा।
अधिनियम से क्या बदलेगा? जानिए स्कूलों के लिए बने सख्त नियम
- बिना अनुमति फीस वृद्धि पर रोक:
कोई भी निजी स्कूल अब बिना जिला स्तरीय समिति की अनुमति के फीस नहीं बढ़ा सकेगा। - 6 महीने पहले प्रस्ताव देना होगा:
स्कूल प्रबंधन को फीस बढ़ाने का प्रस्ताव कम से कम 6 महीने पहले देना होगा। समिति को 3 महीने के अंदर निर्णय लेना होगा। - फीस वृद्धि की सीमा:
अधिकतम 8% फीस वृद्धि की सीमा तय की गई है। इससे अधिक वृद्धि गैरकानूनी मानी जाएगी। - जिला व राज्य स्तर पर समितियां:
जिला समिति के अध्यक्ष कलेक्टर होंगे और राज्य स्तरीय समिति की अध्यक्षता स्कूल शिक्षा मंत्री करेंगे। - रिकॉर्ड की निगरानी:
स्कूलों को अब वेतन, खर्च, भवन किराया, उपस्थिति, फीस रजिस्टर समेत 10 प्रकार के दस्तावेज़ मेंटेन करना अनिवार्य होगा। शिक्षा विभाग इनकी नियमित जांच करेगा। - शिकायतों पर सुनवाई का अधिकार:
अभिभावक संघ यदि फीस वृद्धि पर आपत्ति करता है तो समिति को उस पर सुनवाई करनी होगी। समितियों को सिविल कोर्ट जैसे अधिकार प्राप्त हैं। - अनियमितता पर सख्त कार्रवाई:
यदि कोई स्कूल नियमों के खिलाफ जाकर ज्यादा फीस वसूलता है, तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई संभव है।
क्या होगा इसका असर?
यह फैसला उन अभिभावकों के लिए राहत की सांस है, जो हर साल फीस बढ़ोतरी से परेशान थे। अब फीस निर्धारण में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी। साथ ही प्राइवेट स्कूलों की “नो रूल्स” नीति पर लगाम लगेगी।
राज्य सरकार अब निजी स्कूलों की फीस तय करने की प्रक्रिया को नियंत्रित कर सकेगी और अभिभावकों की भागीदारी भी सुनिश्चित होगी।