नांदयाल, आंध्रप्रदेश। एक मां जो सिर्फ एक बेटे की चाह में अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठी। आंध्रप्रदेश के नांदयाल जिले में एक दिल दहला देने वाली घटना ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है। छह महीने की गर्भवती महिला ने जब यह जाना कि उसके गर्भ में बेटी पल रही है, तो उसने गर्भपात का फैसला किया। लेकिन यह फैसला उसकी जान ले बैठा।
कहां की है यह घटना?
यह मामला आंध्रप्रदेश के नांदयाल जिले के बीरावोलू गांव का है। मृतका श्रीवाणी, जो पहले से दो बेटियों की मां थी, एक बेटे की चाह में तीसरी बार गर्भवती हुई थी। जब गर्भ का छठा महीना चल रहा था, तब वह लिंग परीक्षण के लिए कुरनूल के ‘रक्षा अस्पताल’ पहुंची।
कानूनी अपराध के बावजूद कराया लिंग परीक्षण
अस्पताल में जब उसने लिंग परीक्षण की मांग की, तो कर्मचारियों ने बताया कि यह गैरकानूनी है। लेकिन श्रीवाणी जिद पर अड़ी रही। भारी पैसे देने के बाद अस्पताल में गुप्त रूप से लिंग परीक्षण किया गया, जिसमें बताया गया कि गर्भ में फिर से लड़की ही है। यह सुनकर श्रीवाणी ने गर्भपात कराने का निर्णय लिया और अपने पति को इसके लिए राजी कर लिया।
RMP डॉक्टर से कराया गया अवैध गर्भपात, फिर मौत
पति उसे लेकर नंदीकोटकुर की आरएमपी डॉक्टर गीता के पास गया। वहां बिना किसी मेडिकल प्रोसीजर या सुरक्षा के गर्भपात कर दिया गया। इसके बाद श्रीवाणी को लगातार तेज़ दर्द और खून बहने की शिकायत होने लगी। तीन दिन तक वह दर्द में तड़पती रही, और चौथे दिन अस्पताल ले जाने से पहले ही उसकी मौत हो गई।
जांच के बाद अस्पताल सील, डॉक्टर पर केस दर्ज
घटना की सूचना मिलते ही स्वास्थ्य विभाग और पुलिस हरकत में आ गए। जांच में सामने आया कि:
- रक्षा अस्पताल में अवैध लिंग परीक्षण किया गया था
- आरएमपी डॉक्टर ने गलत दवाओं और प्रक्रिया से गर्भपात किया
- अस्पताल ने कानून की खुली धज्जियां उड़ाईं
इसके बाद ‘रक्षा अस्पताल’ के स्कैनिंग सेंटर को सील कर दिया गया और डॉक्टर गीता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। अस्पताल पर नोटिस चस्पा कर कानूनी कार्रवाई के लिए स्पष्टीकरण मांगा गया है।
कानून क्या कहता है?
भारत में लिंग परीक्षण पूर्ण रूप से अवैध है।
PCPNDT एक्ट 1994 के तहत ऐसा करना अपराध है, और इसमें:
- डॉक्टर की लाइसेंस रद्द हो सकती है
- अस्पताल सील किया जा सकता है
- जेल और भारी जुर्माना लगाया जा सकता है
क्या बेटी होना अभिशाप है? समाज को सोच बदलनी होगी
श्रीवाणी की मौत सिर्फ मेडिकल लापरवाही नहीं थी, बल्कि सामाजिक सोच की हार थी। बेटी को बोझ समझने वाली मानसिकता ने एक मां की जान ले ली।