सीजी भास्कर 7 मार्च कोलकाता की डिवीजन बेंच ने बीते दिन गुरुवार को फैसला सुनाया कि किसी संस्था को अगर एक बार अल्पसंख्यक संस्थान का दर्ज मिल चुका है तो उसे राज्य सरकार से परमिशन लेने की जरूरत नहीं है. वे अपना काम जारी रख सकते हैं. फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने साल 2019 में लगाई गई याचिका को खारिज कर दिया है.
इसके साथ ही कोर्ट ने पुराने कुछ फैसलों और नियमों के बारे में भी विस्तार से बताया है.साल 2019 में लगाई गई याचिका में दावा किया गया था कि पश्चिम बंगाल एसोसिएशन ऑफ क्रिश्चियन स्कूल की तरफ से संचालित स्कूल अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकते हैं. क्योंकि एसोसिएशन ने अल्पसंख्यक दर्जे के रिनूवल के लिए आयोग को आवेदन नहीं किया था.फैसला सुनाते हुए क्या कहा कोर्ट ने?चीफ जस्टिस ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 30(1) की व्याख्याओं के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को सही तरीके से नहीं जानता था. उन्होंने 1988 के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि एक स्कूल जो अल्पसंख्यक स्कूल है वो हमेशा अल्पसंख्यक ही बना रहेगा.मुख्य न्यायाधीश शिवगनम ने कहा कि स्थायी कानूनी स्थिति यह है कि आप लिस्टेड अल्पसंख्यक निकाय पर सरकार के पास जाने और अल्पसंख्यक प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करने का आग्रह नहीं कर सकते हैं.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बताया पुराना फैसलाहाई कोर्ट ने फैसले के दौरान कहा कि मैनेजमेंट रूल-1969 के नियम 33, जो यह प्रावधान करता है कि ऐसे स्कूल सर्टिफिकेट के लिए आवेदन कर सकते हैं, उनका साल 2008 में हटा दिया गया था, इसके साथ ही नियम 33 को हटाने से किसी भी तरह से पश्चिम बंगाल ईसाई स्कूल संघ के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. राज्य सरकार ने अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित निजी संस्थानों के लिए संविधान के अनुच्छेद 26 और 30 के तहत उन्हें दिए गए विशेष नियम बनाए हैं.