सीजी भास्कर, 8 जुलाई |
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि केवल नोट बरामद होने के आधार पर किसी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बल्कि, यह साबित करना भी जरूरी है कि उसने नौअ रिश्वत के रूप में अपनी मर्जी से ली थी। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने रिश्वतखोरी के आरोप में पकड़े गए आदिम जाति कल्याण विभाग में पदस्थ रहे कर्मचारी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। एसीबी ने उसके पास से रिश्वत के 8 हजार रुपए बरामद किया था, जिस पर उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया था। मामला गरियाबंद जिले का है।
मदनपुर के गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल में पदस्थ टीचर बैजनाथ नेताम ने एसीबी से शिकायत की थी, जिसमें बताया कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के आदिम जाति कल्याण शाखा के मंडल संयोजक लवन सिंह चुरेंद्र ने हॉस्टल के छात्रों की स्कॉलरशिप सेक्शन करने के लिए 10 हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी। शिकायतकर्ता के अनुसार दो हजार रुपए तत्काल दे दिए थे। बाकी 8 हजार रुपए बाद में देने का वादा किया था। उसे रंगे हाथ पकड़वाने के लिए नेताम ने 22 जनवरी 2013 को एसीबी रायपुर में शिकायत की थी। जिस पर एसीबी ने ट्रैप टीम बनाई और 1 फरवरी को आरोपी के पास से 8 हजार रुपए बरामद किए। एसीबी ने पैसे जब्त कर आरोपी के हाथ धुलवाए, तब गुलाबी रंग निकला था। नोट बरामद होने, बातचीत की रिकॉर्डिंग और शिकायतकर्ता की बातों को पंचनामा में दर्ज किया गया।
एसीबी कोर्ट ने सुनाई दो साल की सजा एसीबी ने जांच पूरी होने के बाद विशेष न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत किया। फिर एसीबी की विशेष कोर्ट में ट्रायल हुआ। सुनवाई के बाद कोर्ट ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत आरोपी को दो साल और धारा 13 (1)(डी) 13(2) के तहत दो साल की सजा सुनाई थी। दोनों सजाएं साथ चलनी थी। इस फैसले के खिलाफ आरोपी कर्मचारी ने हाईकोर्ट में अपील की थी।
खुद गबन का आरोपी है शिकायतकर्ता याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान बताया कि शिकायत करने वाला खुद भ्रष्टाचार के मामले में संदेह के घेरे में था। रिश्वतखोरी के आरोप में पकड़े गए चुरेंद्र ने पूर्व में शिकायतकर्ता के खिलाफ जांच रिपोर्ट दी थी, जिसमें शिकायतकर्ता पर जुलाई 2011 से अनुपस्थित छात्रों को उपस्थित बताकर 50 हजार 700 की छात्रवृत्ति हड़पने का आरोप लगाया गया था। सहायक आयुक्त ने उसे नोटिस भी जारी किया था, लेकिन उसने राशि जमा नहीं की।
आरोपी को मिला संदेह का लाभ, पैसे मांगने का सबूत नहीं हाईकोर्ट को बताया गया कि आरोपी को स्कॉलरशिप स्वीकृत करने का अधिकार नहीं था। विकासखंड शिक्षा अधिकारी को इस कार्य के लिए अधिकृत किया गया था। इसके साथ ही रिकॉर्डेड बातचीत में रिश्वत मांगने के संबंध में स्पष्ट बात नहीं मिली और ना ही शिकायतकर्ता के आरोपों के समर्थन में ठोस सबूत मिले। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए आरोपी को बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि यह मामला दुश्मनी और झूठे केस में फंसाने का भी हो सकता है।