सीजी भास्कर, 11 जून |
रेलवे एसी कोच के यात्रियों को ऐसे ब्लैंकेट दे रहा है, जिनकी 30 दिन में केवल एक बार धुलाई होती है। अटेंडेंट उसी पुराने ब्लैंकेट को धुला बताकर यात्रियों को थमा रहे हैं। बिलासपुर जोन में एक साल में गंदे बेड रोल की 5338 शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। इसकी पड़ताल से ये खुलासा हुआ है।
रेलवे लिनन (बेड रोल, पिलो कवर, नैपकिन) की धुलाई और प्रबंधन पर लाखों रुपए खर्च करता है। ये सभी सील पैक कर दिए जाते हैं, लेकिन ब्लैंकेट को 30 दिन तक कई यात्रियों द्वारा उपयोग के बाद ही धोया जाता है। कंबल की धुलाई अधिकतम 30 दिन में होनी है। वहीं उत्तर रेलवे में 15 दिन में धुल रहा है।
बिलासपुर जोन से शुरू होने वाली ट्रेनों के एसी कोच में यात्रा के दौरान गंदे बेड रोल और पिलो कवर को लेकर ढेरों शिकायतें मिली हैं। ट्रेनों में सफर के दौरान कुछ यात्रियों ने तो मांगने पर गंदा बेड रोल दिए जाने की शिकायत की है। रेलवे के अन्य विभागों की तुलना में बेड रोल से जुड़ी शिकायतें सबसे अधिक हैं।
बता दें कि प्रति कंबल धुलाई में 23.59 रुपए का खर्च आता है, जबकि रेलवे के बेड रोल धोने में 23.58 रुपए। पैकेट में 2 चादर, पिलो कवर और नैपकिन होता है। रेलवे प्रत्येक बेडशीट की चमक की जांच भी करती है। यदि बेडशीट की चमक 82% से कम है तो उसे हटा दिया जाता है।
लिनन मैनेजमेंट विभाग की भी 264 शिकायतें
लिनन मैनेजमेंट विभाग की शिकायतों की बात करें तो एक साल में इनकी संख्या 264 रही। सबसे ज्यादा शिकायतें कोरबा-अमृतसर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में 58 और अमृतसर-कोरबा एक्सप्रेस में 41 दर्ज हुई हैं। इंदौर-बिलासपुर नर्मदा एक्सप्रेस में 23 तथा बिलासपुर-इंदौर एक्सप्रेस में 21 शिकायतें आई हैं। अन्य ट्रेनों में भी लिनन मैनेजमेंट को लेकर शिकायतें मिली हैं।
गंदे कंबल से फंगल जैसे स्किन इंफेक्शन का खतरा
कंबल के मल्टीपल उपयोग से दिक्कत हो सकती है। 30 दिनों तक कंबल बिना धुलाई यूज करने और मल्टीपल पैसेंजर के उपयोग करने से फंगल व पैरासाइट से होने वाले एस्केविस समेत स्किन इन्फेक्शन का खतरा है।