सीजी भास्कर, 21 जुलाई |
रायपुर। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के लिए जंगल कटाई को लेकर प्रदेश की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर खनिज संसाधनों की लूट और पर्यावरण विनाश का आरोप लगा रही हैं।
वनमंत्री केदार कश्यप का दावा – “मंजूरी UPA सरकार के वक्त मिली थी”
राज्य के वनमंत्री केदार कश्यप ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि:
- साल 2010 में केंद्र की कांग्रेस सरकार के दौरान हसदेव अरण्य क्षेत्र को खनन के लिए चिन्हित किया गया था।
- उस समय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश थे और कोयला ब्लॉक्स की प्रारंभिक स्वीकृति उसी काल में दी गई।
- 2011 में तारा परसा ईस्ट और कांता बासन ब्लॉक खोलने का प्रस्ताव भी कांग्रेस शासनकाल में आया।
- भूपेश बघेल सरकार ने 2019 और 2023 में इन खदानों के लिए वन स्वीकृति की सिफारिश केंद्र को भेजी थी।
भाजपा का पलटवार – “कांग्रेस खुद अडाणी को ऑपरेटर बना चुकी है”
- वन मंत्री ने आरोप लगाया कि जब राजस्थान और छत्तीसगढ़ दोनों में कांग्रेस की सरकार थी, तब अडाणी समूह को कई खदानों का ऑपरेटर नियुक्त किया गया।
- 2021 में गारे पेलमा सेक्टर-2 कोल फील्ड के लिए समझौता और
- 2022 में वन स्वीकृति स्टेज-1 और
- 2023 में स्टेज-2 की सिफारिश कांग्रेस की ही सरकार ने की।
कांग्रेस का जवाब – “खदानों की नीलामी NDA सरकार ने की, हम जंगल कटाई के खिलाफ”
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा कि:
- 2015 में मोदी सरकार ने कोयला खनन अधिनियम के तहत खदानों की नीलामी शुरू की।
- परसा और कांता बासन कोल ब्लॉक को राजस्थान सरकार को आवंटित किया गया, जो हसदेव अरण्य क्षेत्र में आता है।
- कांग्रेस ने इस पूरे मामले में आदिवासी हितों को प्राथमिकता दी और जंगल बचाने के लिए विधानसभा में संकल्प पास किया।
सवालों के घेरे में भाजपा – “केदार कश्यप आदिवासी होकर भी चुप क्यों?”
कांग्रेस ने पूछा कि केदार स्पष्ट करें – वे आदिवासियों के साथ हैं या खदानों के व्यावसायिक हितों के?
कांग्रेस का आरोप है कि केदार कश्यप आदिवासी वर्ग से आते हैं, लेकिन जंगल कटाई के विरोध में एक शब्द तक नहीं बोले।