29 मार्च 2025 :
Freedom Of Expression: ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी (University of Houston) ने अपने ‘लिव्ड हिंदू रिलीजन’ नामक पाठ्यक्रम पर उठे विवाद को लेकर सफाई दी है. विश्वविद्यालय ने कहा कि वह अकेडमिक स्वतंत्रता को महत्व देता है और शिक्षकों को जटिल व संवेदनशील विषयों पर विचार करने की पूरी स्वतंत्रता दी जाती है. ये बयान तब आया जब एक छात्र ने पाठ्यक्रम की सामग्री को लेकर आपत्ति जताई और इसे ‘हिंदूफोबिक’ करार दिया.
छात्र की शिकायत के बाद विश्वविद्यालय के डीन और धार्मिक अध्ययन विभाग के निदेशक ने इसकी समीक्षा की और शिक्षक से इस विषय पर चर्चा की. विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया कि ये पाठ्यक्रम धार्मिक अध्ययन के सिद्धांतों पर आधारित है जिसमें अलग-अलग धर्मों और उनकी परंपराओं को समझने के लिए विशिष्ट शब्दावली का इस्तेमाल किया जाता है. विश्वविद्यालय ने कहा कि ‘फंडामेंटलिज्म’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल सभी धर्मों की ऐतिहासिक और सामाजिक प्रक्रियाओं को समझाने के लिए किया जाता है न कि किसी धर्म की आलोचना के लिए.
प्रोफेसर उल्लेरी की सफाई
इस पाठ्यक्रम को पढ़ाने वाले प्रोफेसर एरोन माइकल उल्लेरी ने भी इस विवाद पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य हिंदू धर्म के अलग-अलग रूपों को समझाना है न कि इसे किसी एक परिभाषा में सीमित करना. उन्होंने जोर देकर कहा कि उनका पाठ्यक्रम हिंदू धर्म के ऐतिहासिक और सामाजिक पहलुओं को व्यापक रूप से कवर करता है जिसमें इसकी उत्पत्ति से लेकर वर्तमान तक की यात्रा शामिल है.
हिंदू धर्म और हिंदुत्व पर प्रोफेसर का स्पष्टीकरण
प्रोफेसर उल्लेरी ने स्पष्ट किया कि हिंदू धर्म कई अलग-अलग परंपराओं और मान्यताओं का समावेश है. उन्होंने बताया कि ‘हिंदू’ शब्द भारतीय संस्कृत साहित्य में प्राचीन काल में नहीं पाया जाता था बल्कि ये एक भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान के रूप में विकसित हुआ. उन्होंने ये भी कहा कि ‘हिंदुत्व’ एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में 1922 में उभरा और इसके ऐतिहासिक पहलुओं को पाठ्यक्रम में निष्पक्ष रूप से पढ़ाया जाता है.