सीजी भास्कर, 14 सितंबर। राजधानी में एक सनसनीखेज मामला (Railway Officer FIR Case) सामने आया है जिसने रेलवे मंडल के अफसरों की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 13 साल से दबा हुआ एक केस अचानक फिर से सुर्खियों में है और इस बार सीधे सीनियर अधिकारी पर कानूनी शिकंजा कसा गया है। शिकायतकर्ता का दावा है कि सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी न केवल गलत दी गई बल्कि इसे छिपाने की भी कोशिश हुई। अब इस राज से पर्दा उठने लगा है और जांच की बागडोर सीआईडी के हाथों में आ गई है।
पूरा विवाद दरअसल दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे रायपुर मंडल से जुड़ा है। यहां के सीनियर डीसीएम अवधेश कुमार त्रिवेदी और अन्य पर यह आरोप लगाया गया है कि आरटीआई से संबंधित दस्तावेजों में गड़बड़ी की गई। शिकायतकर्ता एडवोकेट आनंद कुमार शर्मा ने इस मामले में सीआईडी में सीधे एफआईआर दर्ज कराई है।
रायपुर जिले और रेल मंडल क्षेत्र के इस मामले ने प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है। यह एफआईआर ओडिशा के कटक में धारा 173(1) बीएनएसएस-2023 के तहत दर्ज हुई है और अब मामले की जांच सीआईडी कर रही है। रायपुर रेल मंडल से संबंधित इस एफआईआर को (Railway Officer FIR Case) के रूप में देखा जा रहा है, जिसने कई अधिकारियों की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
शिकायतकर्ता कल्पना स्वामी का आरोप है कि उन्होंने रायपुर आरक्षण केंद्र में पदस्थ कॉमर्शियल स्टाफ से जुड़ी जानकारी आरटीआई के जरिए मांगी थी। लेकिन उन्हें जो कागजात दिए गए वे कथित रूप से गलत पाए गए। इसी आधार पर एफआईआर दर्ज हुई। इस शिकायत को (Railway Officer FIR Case) में शामिल किया गया है और अब सीआईडी यह जांच करेगी कि आखिर गलत जानकारी देने के पीछे किन अफसरों का हाथ था।
वहीं, आरोपी सीनियर डीसीएम अवधेश कुमार त्रिवेदी ने कहा है कि उन्हें इस एफआईआर की जानकारी है लेकिन वे अभी किसी तरह की आधिकारिक टिप्पणी नहीं करेंगे। उन्होंने साफ किया कि वे लीगल एक्सपर्ट से राय लेने के बाद ही आगे का कदम तय करेंगे।
मामला सार्वजनिक होने के बाद रेलवे मंडल के अन्य अधिकारियों पर भी नजरें टिकी हैं। जानकार मानते हैं कि (Railway Officer FIR Case) यदि आगे बढ़ता है तो रेलवे प्रशासन को भी कई स्तर पर जवाब देना पड़ सकता है। आरटीआई जैसे कानून में जानकारी छिपाना या गलत सूचना देना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है और इसी वजह से यह केस अब और ज्यादा चर्चित हो गया है।