सीजी भास्कर, 18 दिसंबर।भारतीय टेलीविजन के इतिहास (Roopa Ganguly Draupadi) में कुछ किरदार ऐसे हैं, जो केवल परदे तक सीमित नहीं रहते, बल्कि दर्शकों की स्मृति में स्थायी रूप से दर्ज हो जाते हैं। बी.आर. चोपड़ा की ‘महाभारत’ में द्रौपदी का किरदार भी ऐसा ही एक उदाहरण है, जिसे रूपा गांगुली ने अपनी संवेदनशील और सशक्त अदायगी से अमर बना दिया। दशकों बाद भी जब द्रौपदी का नाम लिया जाता है, तो दर्शकों के मन में सबसे पहले रूपा गांगुली का चेहरा उभर आता है।
एक किरदार, जिसने पहचान बदल दी
रूपा गांगुली ने अपने करियर में फिल्मों और अन्य टीवी प्रोजेक्ट्स में भी काम (Roopa Ganguly Draupadi) किया, लेकिन ‘महाभारत’ में द्रौपदी का रोल उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। यह किरदार सिर्फ लोकप्रिय नहीं हुआ, बल्कि लोगों ने उन्हें वास्तविक जीवन में भी द्रौपदी के रूप में देखना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि उस दौर में लोग सार्वजनिक स्थानों पर उनसे बेहद श्रद्धा के साथ बात किया करते थे।
वो दृश्य, जिसने कलाकार को तोड़ दिया
‘महाभारत’ का चीरहरण प्रसंग भारतीय टेलीविजन का सबसे पीड़ादायक और प्रभावशाली दृश्य माना जाता है। बी.आर. चोपड़ा स्वयं मानते थे कि यही वह क्षण है, जहां से महाभारत की त्रासदी शुरू होती है। इस सीन को पर्दे पर उतारना जितना जरूरी था, उतना ही कठिन भी।
शूटिंग से पहले बी.आर. चोपड़ा ने रूपा गांगुली से लंबी बातचीत की थी। उन्होंने द्रौपदी के अपमान की मानसिक पीड़ा को समझाया और कहा कि इस दृश्य में अभिनय नहीं, बल्कि भावनाओं की सच्चाई दिखनी चाहिए। कैमरा रोल हुआ और रूपा गांगुली पूरी तरह द्रौपदी बन गईं।
एक टेक में पूरा हुआ दृश्य
सेट पर मौजूद लोगों के अनुसार, यह सीन केवल एक ही टेक में शूट किया गया। रूपा गांगुली का दर्द, उनकी आंखों की विवशता और आवाज़ की कंपकंपी इतनी वास्तविक (Roopa Ganguly Draupadi) थी कि पूरे सेट पर सन्नाटा छा गया। दृश्य खत्म होते ही वह खुद को संभाल नहीं पाईं और फूट-फूटकर रो पड़ीं।
कमरे में खुद को कर लिया था बंद
शूटिंग के बाद रूपा गांगुली भावनात्मक रूप से पूरी तरह टूट चुकी थीं। उन्होंने किसी से बात किए बिना अपने कमरे में जाकर खुद को बंद कर लिया। यह दृश्य न केवल दर्शकों के लिए, बल्कि कलाकारों और तकनीकी टीम के लिए भी बेहद गहरा अनुभव था। इस सीन के लिए लगभग 250 मीटर लंबी साड़ी का इस्तेमाल किया गया था, जो एक ही ट्रेल में तैयार की गई थी, ताकि दृश्य की निरंतरता बनी रहे।
आज भी वैसी द्रौपदी नहीं मिली
समय बदला, तकनीक बदली, कई पौराणिक धारावाहिक बने, लेकिन द्रौपदी के किरदार में वह तीव्रता और गरिमा दोबारा देखने को नहीं मिली। यही वजह है कि रूपा गांगुली की द्रौपदी आज भी अतुलनीय मानी जाती है और यह दृश्य भारतीय टीवी इतिहास का सबसे भावनात्मक अध्याय बन चुका है।


