सुप्रीम कोर्ट ने SC Certificate Judgment में ऐसा फैसला दिया है जो आने वाले समय में जाति निर्धारण की परिभाषा को नया रूप दे सकता है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि अगर बच्चा सामाजिक रूप से मां के समुदाय में पला-बढ़ा है, तो पिता की जाति बाधा नहीं बन सकती। इस मामले में एक नाबालिग लड़की को उसकी मां की अनुसूचित जाति के आधार पर प्रमाणपत्र देने का आदेश बरकरार रखा गया।
बेंच की टिप्पणी ने खोला बड़ा सामाजिक सवाल
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की बेंच ने यह फैसला देते हुए सवाल उठाया—
“बदलते हालात में, मां की जाति के आधार पर प्रमाणपत्र क्यों नहीं जारी किया जाना चाहिए?”
यह टिप्पणी Mother-based caste certificate पर भविष्य में विस्तृत बहस का रास्ता खोलती है।
मामला कैसे शुरू हुआ?
पुडुचेरी की एक महिला, जो ‘आदि द्रविड़’ समुदाय से आती है, ने अपने तीन बच्चों के लिए SC प्रमाणपत्र की मांग की थी। उसका कहना था कि उसके पति (जो नॉन-SC हैं) शादी के बाद से ही उसके मायके में रहते रहे, और बच्चे वहीं उसी माहौल में बड़े हुए।
तहसीलदार ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि नियमों के अनुसार जाति पिता की जाति से निर्धारित होती है। इसके बाद महिला ने फैसले को चुनौती दी और हाई कोर्ट ने उसके पक्ष में निर्णय दिया, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना।
पहले कानून की स्थिति क्या थी?
जाति निर्धारण को लेकर न्यायालय के पहले के फैसले अक्सर पिता-आधारित पहचान पर टिके रहे हैं। 2003 के एक अहम मामले में अदालत ने कहा था कि प्रमाणपत्र का आधार पिता की जाति होगी।
लेकिन 2012 के Rameshbhai Naika principle में अदालत ने माना कि बच्चा अगर मां के समुदाय में पला-बढ़ा हो और उसी समाज की तरह अवसर और भेदभाव झेला हो, तो उसकी पहचान सिर्फ पिता से तय नहीं मानी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बार भी यही सिद्धांत दोहराया और कहा कि बच्चे के सामाजिक परिवेश को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
फैसले का असर किन पर पड़ेगा?
यह फैसला उन परिवारों के लिए बड़ी राहत है—
- जहां मां SC समुदाय से आती हैं,
- पिता गैर-SC हैं,
- और बच्चे मां वाले समाज में ही बड़े हुए हों।
ऐसे मामलों में अब SC Certificate Eligibility का दायरा और स्पष्ट हो जाएगा।
भविष्य में हो सकती है बड़ी कानूनी बहस
CJI ने संकेत दिया कि जाति निर्धारण का मॉडल सिर्फ पितृसत्ता आधारित नहीं रह सकता। बदलते सामाजिक ढांचे और एकल मातृत्व, अंतर-जातीय विवाहों और अलग-अलग पालन-पोषण के कारण जाति पहचान की वास्तविकता अब पहले जैसी नहीं रही।
यह फैसला न सिर्फ उस लड़की का भविष्य बदलने का रास्ता खोलता है, बल्कि आने वाले समय में जाति प्रमाणपत्र से जुड़े पुराने नियमों की समीक्षा का दरवाज़ा भी खोलता है।


